तीन प्रश्न

१५ पुष २०७६, मंगलवार
तीन प्रश्न

रानाथारू खबर

धनगढी , ५ कातिक

सब से महत्त्वपूर्ण काम का हए ?

 सल्लह सुझाब के ताँहि  महत्त्वपूर्ण अादमि कौन ?

काेइ फिर काम करनकाे महत्त्वपूर्ण समय  कब हए ?

जे प्रश्नके बरेमे बतानके ताँहि मय एक कहानि से जाेडन चाहत हाै । एक दिन  राजा अपन सब मन्त्रि बुलाके एक प्रश्न करत हए तव बाे प्रश्नकाे  संतोषजनक उत्तर कोइ नादइपाइ तव बाे सभा में राजा के एक ऐसाे सन्यासी भगताके  बारेम  पता चलाे बाे सुदूर जंगल में एक कुटिया में रहात रहए  और सबकी जिज्ञासा कि बात समाधान करने में क्षेमता फिर रहए बाे सन्यासी भगतामें | तव राजा  साधारण भेष में अपने कुछ सैनिक अाैर गुप्तचर लैके चल दइ  सन्यासी के दर्शन के ताँहि | राजक मनमे आसरा रहए कि अब मिर प्रश्नके उत्तर अवश्य  मिल जाबैगाे | जब बे सबजनि सन्यासी की कुटियाके ढिंगै पहुचे तव राजा अपन सभय सैनक अाैर गुप्तचरनके कुटिया से दूर रहनके आदेश दइ और इकल्लाे राजा कुटियामें गअाे |

राजा  देखत हए कि अपन कुटिया ढिंगई सन्यासी खेत में फरूहा चलयके खाेदरहाे हए | थाेरी देरमें सन्यासीकि दृष्टि राजा में पड़ी |  फराेहा से खाेदतय खाेदत  सन्यासी राजा से  आनकाे कारण पूछी और राजा फिर बहुत आदर से अपन बेहीँ तीन प्रश्न सन्यासी से पुँछि |अाैर  राजा अपन पुछाे भव प्रश्न कि उत्तर के ताँहि असरा लगके बैठगअाे पर  सन्सायासी साधु   उत्तर देन की बजाय राजासे कहि ले जा फरूहा पकड और राजा बिचाराे का करय फराेहा पकडके खाेदन लागाे | काहे कि राजा के अपन प्रश्नक उत्तर फिर त चाहाे |

राजाके खेत खाेदत खाेदत साँझ हुइगयी |इतकयमें  एक घायल अादमि  खून से लथपथ  और बुक पेट से खून की धार बहि रहीरहए ।,बाे सन्यासी की शरण लेन अव रहए | अब सन्यासी अाैर राजा दुनों  मिलके बाे घायल अादमिक मरहम पट्टी करिदर्इ | पिर से कुछ राहत मिली अाैर घायल अादमि सोय गअाे । कुछ देर बाद जब बाे घायल अादमि निदसे उठाे अाैर राजा से क्षमायाचना करन लगाे तव राजाके आश्चर्य लागाे | अन्जान अादमी राजा की जा हालत  देख तुरन्त अपन परिचय दइडारी  अाैर कहि “कल तक  मैं  तुमके अपन बहुतबडाे दुसमन मानत रहाँअाे काहे कि तुम मिर भाइयाके फाँसी की सज़ा दयरहअाे | बदला के भवसे अवसर ढूढ़त रहँअाे |जव कल माेके पता लगाे  कि तुम अपन वेष बदके  साधु के पास आएहअाे | तुमके मारन के उद्देश्य से मैं हिना अावरहँअाे । और एक झाड़ी के पीछु लुक्के बैठाे रहँअाे पर तुमहर गुप्तचर माेके जानगए रहँए और घातक हथियार से माेके मारी अाैर मय भाजत भाजत हिनापहुच गअाे । पर तुम अपन शत्रु होनके बजहसे फिर मेरी ज्याहान कि रक्षा करे | जासे  मिर मन के द्वेष सब समाप्त हुइगअाे | अब मैं तुमहर चरण कि सेवक बन गअाे हँअाे | तुम  चहु माेके दण्ड देव अथवा माेके क्षमादान देबअाे, जा तुमहर  इच्छा हए |”

घायल की बात सुनके राजा चुप्प  रहिगअाे और मनय मनमे जा घटनासे भगवानके सहयोग के ताँहि धन्यवाद देनलागाे | सन्यासी मुस्कुराइ और राजा से कहन लगाे कि “राजन् , का अभय फिर तुमहर अपन प्रश्नके उत्तर नामिलाे ?”

राजा कुछ दुविधा में दिखाई दइ  जाकेमारे कि सन्यासी बातके थाेरी अाैर स्षस्ट करनके ताँहि अग्गु कहिँ – ‘तुमहर सुरूकाे प्रश्नके उत्तर हए —सब से महत्त्वपूर्ण काम का हए ?  जैसे अगर तुम मोके खेत खाेदन में सहयता करदय | यदि तुम मिर प्रति सहनुभुति न दिखाते तव तुमहर जीवन की रक्षा न हइ पाती ।

अब तुमहर दूसराे प्रश्न रहए  कि सल्लह सुझाब के ताँहि  महत्त्वपूर्ण अादमि कौन ? जाकाे उत्तर तुमके स्वयं ही मिल चुकाे हए । कि जोन अादमि हमार ठिन उपस्थित  हए  , बहे से सल्लह सुझाब लेनचाहाे चहुदुसमन किउनाहाे | जैसे कि बाे घायल अादमि कि सहायता  आवश्यकता रहए अाैर बाेकि प्रण तुम  बचाए | एेसियए  तुमहर शत्रु फिर तुमहर  मित्र बन सकत हए ।

तीसरे प्रश्न कि उत्तर जाए है कि काेइ फिर काम करनकाे महत्त्वपूर्ण समय  कब हए ? “ अभय ” |  भविष्य की चिन्ता में वर्तमान काम अगर बिगड़ जाय तव हम हाथ  मलत रहि जामंगे | काेइ फिर कामके दिल से मन अाैर पुरीलगन से करन अाैर समय कि  पुराे सदुपयोग करके हि  केवल उज्ज्वल भविष्य की संभावना हए । भागवत गिता में  भगवान श्री कृष्ण कहि   कर्तव्य हि मनुष्य कि धर्म हए  |

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