रानाथारू सामुदायमे “दिबारी” तिउहार

८ कार्तिक २०७९, मंगलवार
रानाथारू सामुदायमे “दिबारी” तिउहार

धनगढी-
राना थारू कबिलामें  होरी, खखड़ेहरा, चराइँ, असाढ़ी,  तिज, अट्टमी,  दुज जैसे बहुत सारी त्योहार औ परब पुर्खौँ से मानत आए हए। बे त्योहार औ परब मैसे एक त्योहार दिबारी भी हए। जैसे की और कबिलाके आदमी दिपावली मे लक्ष्मी पुजा, भाइ टिका मनात हए । उइसी ना मनाएके रानाथारू कबिलनमे अलग तौरतरिकासे मनात हएँ। राना थारू कबिलामे बिसेसकर दिबारी अपन कुल दिउतनके पुजा करत हए ।

लेखकः लक्ष्मी कुमारी राना, कैलारी गाउपालिका-९ गदरेहा गाँव

दिबारी कब
गाउँके सबसे बडे पधना, भलमन्सा, चाकर होत हए। उनहीके सल्लाह औ गाउँके और फिर जनैया बुझैया बैठके दिबारीके दिन धरत हएँ । दिबारी कार्तिक महिनाको उजियारी मे मनात हएँ  । अभे को जा समो मे कलेन्डर देखके दिबारीके दिन धरत हएँ पर तहुँ फिर बुड़ा परेबा अर्थात अँधियारी उजियारी देखके दिबारी करत हएँ। राना थारू कबिलाको हर कोइ त्योहार या पुजापाठ होएसे भी उन सबमे दिन देखो जात हए। दिन फिर घरको कुल देवता अनुसार होत हए ।  कुइको दिउता बुध शनिचर लेत हए ता कुइको दिउता इतबार बिस्पत लेत हए । बहे आधार मे दिबारी भी करत हएँ ।
दिबारीके दिन गोइ बन्द करनको चलन पहिलीसे चलत आओ हए। रानाथारू खेतीकिसानी पुर्खौँसे करत आए हएँ। उनके घरमे बाह्रो मास काम रहत हए तभी एक दिन होएसे फिर अपन गोइ डल्लफ बन्द करके गाउँके ददा भैया एक दुसरे के संग सुखदुख बाँटत दिबारी मनात हए।

दिबारीसे जुडी कहानी
दिबारीके दिन भगवान श्रीराम रावणके सर्वनाश करके माता सिता और भ्राता लक्ष्मण के संग चौधा बर्ष के बनबास पुरा करके अयोध्या लौटे रहएँ । जहे खुसीमे अयोध्याबासी दिया पजारके उनके स्वागत करी रहएँ । जहे दिन माता लक्ष्मीके आगमनके दिन भी कहो जात हए। जहे दिनके दिबारी मनान सुरु भओ।

खिच
दिबारीके एक दिन अग्गु खिच मनात हएँ । जा दिन घरमे रहोभओ जित्तो जानबर हएँ उन सबके पुजा करत हएँ । भैँसा, बरधनके सिङ्गमे कारो स्याही लगाएके पिठमे हातको पन्जा बनात हएँ । विशेसकर बरधनके मथेहर खाँखरा लगाएके सजात रहए। औ अच्छो अच्छो चिज जैसेकी धुटा, नुन खबात हएँ ।

सुपो बजानको परम्परा
दिबारीमे सुपो बजानको परम्परा पहिली से चलत आओ हए। दिबारीके एक दिन अग्गु सही साँझ सुपो औ चम्ची छानीमें धरदेत हए। मुर्गा बाङ्ग घरकी एक बैयर अपन घर, आँगन, बारीके आसपिस में सुपो बजात हएँ औ कहनीया कहत हए की इसुर आ दलिद्दर जा इसुर आ दलिद्दर जा । सुपो बजानके बाद सुपो औ चम्ची फिरसे छानिअए मे धरदेत हए।

सुपुअए काहेक
सुपोके भँगिया मानो जात हए। भँगिया जो झाडबढारके सफा करत हए। घरमे सुपो बजानसे घरमे रहो गओ भुत, पलीत, दलिद्दर जैसी खराब चिज भाजत हए औ घरमें सुख, सान्ती, बरकत, इसुर के बास रहत हए। तभी दिबारी मे और चिज छोडके सुपो बजात हएँ ।

दिबारीमें पुजा
खिचके दुसरो दिन दिबारी होत हए । मुर्गक बाङ्ग सुपो बाजत हए औ सबेरे दिउतनके पुजत हएँ। रानाथारू कविलाके भितर बहुत उपथर हएँ । बिनके अपने अपने दिउता रहत हए । कोइके घरमे पाँच दिउता कुइक घरमे सात औ कुइ घरमे दस दिउता रहत हए। राना थारूनके अपने दिउता जैसेकी पारवती, जोखे, बडबाएक, नगरयाही, दुर्गा, सौँरा, निराधार, बिस्हर,कालिका, मुधेरो, करिया, गुदनी, गुदना ऐसी और भी दिउता रहत हएँ । दिउता पुजनमे कन्डा सुल्गाएके अगियारी करत हए जौन कुइ मुर्गा पुजत हए ता बे मुर्गा पुजत हएँ । कुइ कुइ चुनके मुर्गा बनाएके पुजत हएँ ता कुइ लौँङ्ग, फुला, कुइ धुप, कुइ कच्चो मलिदा पुजत हएँ। सारके अग्गु एक दिउता रहत हए बो दिउता मे बैठा बन्नीके बेढके उपर सेतो चिथरा उढात हए औ भितर दिया पजारत हए। कुइ घरमे जक संगए संग एक दिउता मे फिर दुसरी बन्नी फैलाएके कारो चिथरा उढात हए औ दिया पजारके अगियारी करत हए। जे दिउतनके ताही अलग अलग अगियारिक ताहीँ अलग अलग कन्डा सुल्गान पडत हए।

बली
दिबारीमे मुर्गा, बकरा पुजत हए। दिउता अनुसार को बली देत हएँ ।
पर जा समोमे तमानसे बकरा मुर्गा पुजन छोरदै हएँ । उनके बदला चुनके मुर्गा बनाएके पुजत हएँ औ तमानसे मिठा, कलाकन्द, धुप, फुला, लौँङ्ग चढाओ करत हएँ । गदरिया की सुन्दरी राना कहत हएँ की पहिले हमर जए दिउता तए जोडा मुर्गा पुजत रहए तव जा सब भर्रा छुडबाए दै बा दिनसे हम सादा पुजा देत आए हए जैसे  हमर दस दिउता हए तव दिबारीमे चुनके दस जोडा मुर्गा बनाऐके पुजत हएँ ।

सरसतीको पुजन
बढे बुढे कहत हएँ की दिबारी मे पढिया आदमी सरसती माता की पुजा करत रहएँ । बा रात सरसती माता पढान आत हए कहिके पढिया रात रात भर किताब पढे करत रहएँ । पढिया लोग सबेरे सरसती माताके कारी पुथिया पुजत रहएँ औ घरके आदमी अपनो नियमसे दिउतनके पुजत रहएँ ।

विश्वास
दिबारी दिउतनके पुजा हए। दिउतनके पुजापाठ करनोसे औ सुपो बजानोसे घरसे दलिद्दर भाजत हए औ इसुर को बास रहत हए। घरमे बरकत आत हए को विश्वास जनमानसमे रहो आओ हए।

दिबारीमें हटकना
राना थारू कबिलामें दिबारीके दिन हटकनाको परम्परा चलिआओ हए। जा त्योहारमे अपने अपने नातेदार सम्धियानो मिन्त्रानो के हटकत हएँ और जा दिन गाउँमे घरघर हटकना खात हएँ।

दिया पजारन
दिबारीमे सबए घरके दिउतनमे दिया ना पजारत हएँ । पर  कुइ दिउतनमे पजारत हएँ ता कुइ दिउतनमे ना पजारत हएँ । घर आँगनमे भर दुइदिन तक मैनबत्ती अर्थात दिया पजारत हए।

अन्तमें
पहिले पहिले को दिबारी अबको दिबारी माननको तरिकामे फरकपन आन डटो हए। तमानसे आजके पुस्तनके जहुँ पता ना हए की हम दिबारी मानत हए या दिपावली। तमानसे लोग दिबारी शब्दके घडाके रुपमे फिर लेत हएँ पर तमानसे लोग त्योहारके रुपमे लेत हएँ । जो रहेसे फिर जेहीँ देओ धामके आसरे हम औ हमरो गाउँ बैठो गओ हए। जौनके सरन हम बैठे हए उनके पुजापाठ दिन देखके करोजात हए पर पहिले पहिले पशु बली जो देत आए हए अभए को समोमे बहुतसे छोडदै हए औ सादा पुजामे परिवर्तित हुइगए हएँ। कोइ भी त्योहार होए बो त्योहारमे सुखी औ समृद्धी लाए ना की लडाइ भिडाइ। जोन जहा हए जैसी स्थिती मे हए बे अपन क्षमता अनुसार तर त्योहार मनान जरूरी हए। 

राससः सबेराे अर्धवार्षिक पत्रिका मैसे

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