हितुवाक्वारा लोककथा

३१ असार २०७८, बिहीबार
हितुवाक्वारा लोककथा

धनगढी,३१ असाड ।

एक समयकि बात हए । हितुवाक्वारा जब पेटमे रहए बोके दौवा बितिगओ और जब जलमो तव ऐया । सब कहए गरभमे हितुवा बापक खाइ जलमो त खाइ महतारी । हितुवा जनमक अभागी ऐया दौवक दुलार नपाइ । बेसाहारा हितुवाके मुमा उठालाइ । अपन बच्चा जैसो हितुवाके मुमा माइ खुब दुलार करोकरएँ । ऐसि दिन बितत गए हितुवा बडो होत गओ।

हितुवाक्वारा जब लचपचो जमान भओ बोके ताही मुमा बछराके गोइ बनाए दै । बो रोजदिन बनके चरान जाओ करए और बोके संगी फिर अपन अपन गैँया बछरा लैके बनमे चरान जाओ करएँ । हितुवाके संगी खुब फँदा बेढे करएँ और चिरइ पडाओ करएँ । सब बे अच्छि अच्छि बुट्टि खाए डारएँ । हितुवाके डखमा और पन्झा दैदे करएँ । हितुवा सोचि मए फिर फँदा बनैहओ और अच्छि बुट्टि खैहओँ । घरे आएके हितुवा अपन मुमासे कहि मए फदा बनैया हओ । मुमा कहि सारे जानए न उनए फदा बनैया । बोके माइ मस्कि दैदेओ सन और बास अपनए बना लेहए । हितुवाके मुमा सन और बास दैदै ।
गित -सुतरी त काटय रे हितुवा ठुल्ली रे पतरी
हितुवा रे हितुवा काटन न जानी
कैम चिरय रे हितुवा ठुल्ली रे पतरी
हितुवा रे हितुवा चिरन न जानी
अब हितुवा सुतरी काटन न जानए, बासक कैम छोलन न जानए । जैसितैसि करत करत फँदा बनाए डारि । अब हितुवा बछरक गोइ लइ अाैर चुगानके बनके चलो । हितुवाके संगी फँदा बेढन लागे । बो कहि आज नयाँ फँदा बनाएके लाओ हओ । महुँ बेढङ्गो और चिरइ पडैगि महु बुट्टि खाङ्गो ।
गित -लौडा त बेढय टिकरा रे टिकरा
हितुवा रे हितुवा बेढय मजधारय
सब बोके संगी बिच धारमे फँदा बेढए । सैदा हितुवा टिकारे बेढि । बहे दिन महादेव और गौरा फिरन निकरे । फिरत फिरत गौरा महादेवसे कहि मय एक घरि खेहेरो खेल्लेव नदियम । महादेव कहि जध्धा दूर मत जैए । आजकल लर्का फँदा बेढत हए । गौरा कहि अँहँ दुर नजैहओ । गौरा चिरैँयाके भेषमें खुब जा छोरसे बो छोर डुब्बि लगाबए । ऐसि करत करत गौरा हितुवाके फँदामे पडिगइ । हितुवा चिरइके जल्दि जल्दि निकार लै । बोके संगि कहँय कि इतनि सुथरी चिरइ पडाओ हए हमके दैदे । हितुवा कहि मए न देहओ मए घरे जाएके खामङ्गो । अब बछरा घरे लान बेरा हुइगै । हितुवा बछरा खोलन गओ त बछरा हितुवाके सिखौन लगो कि जौन जा चिरइ मागन आबए बोसे कहिए मोके बाह्रा बर्ष अठारा जुगकि हिल्ता मिलय और पहिले बाचा हराए लिए । हितुवा कहत हए ठिक हए ऐसि करहओ । शिव जी बाबाके भेषमे हितुवा जौँडे चिरइ मागन आओ । शिव जी बोले भैया रे जा चिरइ मोके दैदे । हितुवा कहि मए जो मागङ्गो बहे देन पडैगो । शिव जी कहि अब तए जो माग चिरइके बदला बहे देहओ । हितुवा कहि मोके हिल्ताक्वाँरी मिलए और बाह्रा बर्ष मिलए । शिव जी कहिँ अब तए बाचा हराए लओ, कुछ दिन पिछु सात डोला आमङ्गे बे मैसे एक डोला पकड लिए । हितुवा कहि ठिक हए जा चिरइ लैजा । हितुवा बाह्रा बर्ष मागि पर अठारा जुग कहन भुलिगओ । बाबाके चिरइ दैदै ।

एक दिन हितुवा बछरा चुगात होत हए कि पछारसे कारो अधियारो करत डोला आत हए । बकरेहरा भैँसौरा बेढम जोडक आँधी आत हए कहिके अपन डङ्गर लैके घरघैन भाजत जात हए । हितुवा बछरा दलान गओ बोक बछरा बैठ गओ । हितुवा दलात हए बछरा उठैया नाए । हितुवा कहि सब जनैँ घरघैन गैभय तए मए रहिगए तए काहे न उठत हए । बछरा हितुवासे कहत हए कि थोरि देरम जा सुधन डोला छिरैगो तए चम्चमात डोला मत पकडिए छियापचारो डोला पकडिए । हितुवा कहत हए अहँ ऐसि करहँओ। थोरि देरम आँधी हानि चम्चमात डोला छिरत हएँ । हितुवा ठाह्रो देखत हए । जैसि बछरा कहत हए उइसि हितुवा चम्चमात डोला न पकडि छिया डोला पकडि । जौन डोला पकडि बो डोला रूक्गओ और डोला छिरे चलेगए । बो डोलामैसे खुब सुथरी हिल्ताक्वाँरी लाैिडया निकरत हए । हितुवा हिल्ताके अपन मुमा घर लैचलो जात हए । घरे जाएके हितुवा अपन मुमासे कहि मुमा रे आज रहनक ठाउँ दैदिए । मुमा कहि सारे कहुनक अभे सम ऐसि रहत रहए आज रहनक ठाउँ पुछत हए जा बो भिसौरिम रहिलिए । हितुवा हिल्ताके भिसौरिम रहनक लैजात हए । साँझके माइ जो पकाइ बहे हितुवाके खानक दै । हितुवा पर्सा लैके भिसौरिम जात हए । एक परसा और दुइ जनैको पेट न भरैया । खानु देखके हिल्ता कहत हए

गित -मए तोके सौँरओ रे इन्दल मामा थराभरा भुजानो पठैए।

इन्द्र देव अच्छो अच्छो खानु थरियाभर पठौत हए । दोनो जनै खानु खात हए और बो थरिया जैसी आओ उइसि चलोजात हए । ऐसि भिसौरिम रहत रहत एक दिन हिल्ता हितुवासे कहत हए अपनो रहन ताहिँ जगहा त पुछिअओ मुमासे अपनो जगहा रएहए त घर बनालेहए कहाँतक जा भिसौरिम रहमङ्गे । हिल्ताके बात सुनके हितुवा मुमासे अपन ताही जगहा पुछन गओ । हितुवा पुछि मुमा रे मिर जगहा कहाँ हए । मुमा कहि अबले भिसौरिम बसर कटत रहए अब तोके जगहा चाहो जा बो गुहक खेरोम । मुमाके बात सुनके हितुवा मरो मन लैके हिल्ताके सामने आत हए । हिल्ता पुछि मुमा का कहि ? हितुवा कहि मुमा बहे गुहक खेरो दिखाइ हए । हिल्ता कहि चलओ त चलए जगहा देखन । हितुवा और हिल्ता जगहा देखन जात हए । ममा दिखाइ जगहामे गुहय गुह भरो होत हए । हितुवा कहि जामे कैसे रहङ्गे ? हिल्ता इन्द्र देवके सौँरत हए बो कहि

गित – मए तोके सौँरओ रे इन्दल मामा सोरा रे पठैए ।

इन्द्र देव डटके सोरा पठात हए । सोरा सब गुह खाएके सफा करजात हए । फिर हिल्ता कहत हए

गित -मए तोके सौँरओ रे इन्दल मामा एकाघरी मेघा रे पठैए ।

इन्द्र देव बेढम जोडसे मेह बर्सात हए कि बो जगहा सब धुइजात हए । फिरसे हिल्ता अपन मामाके सौँरत हए ,

गित – मए तोके सौँरओ रे इन्दल मामा महल बनान रे पठैए ।

इन्द्र देव बेढम मनैनके महल बनान पठात हए और बहे जगहम बडो महल बनाए देत हएँ । तौसे हितुवा और हिल्ता बहे महलमे रहन लागत हए ।

जिन्दगानी के आगे हितुवा और हिल्ताके बाह्रा बर्ष कटे पतय न चलत हए । बाह्रा बर्ष पिछु इन्द्र देव हिल्ताके लेन पठात हए । अभागी हितुवाके बहे दिन गहिरी निँद आए जात हए । हिल्ताके लेनक निनरिया बैठे होत हए । हितुवा सोएक न उठत हए । अब हिल्ता जानक समरन लागत हए ।
गित -घुँगटा त ओढय हिल्ता ठुनका लगाए
जागओ रे जागओ मेरे करम अभागी
कजरा त लगाए हिल्ता ठुनका लगाए
जागओ रे जागओ मेरे करम अभागी
बिँदिया त लगाय हिल्ता ठुनका लगाए
जागओ रे जागओ मेरे करम अभागी
बिछिया त पैँधय हिल्ता ठुनका लगाए
जागओ रे जागओ मेरे करम अभागी

हितुवा चाल पाबय कहिके हिल्ता चाल कर करके समरत हए । घुँघट ओढत बिँदिया लगात तहुँ फिर हितुवाके निद न टुटत हए । हिल्ता समह्रक जान लागि । हितुवा सोत रहिगओ पतए न पाइ । हिल्ता अपन लत्ताके चीर डगरय डगर डारत गइ । चीर निपटो तओ अपन कजरासे निसान बनात गइ । हिल्ता स्वर्ग पुग्गइ । हेना हितुवा सोएके उठो । देखत हए हिल्ता नैया । अब हितुवा चीरके बनो निसानो देखलै । सोचि जा निसानो हिल्ता बनात गइ होबैगी । निसानो देखत हितुवा हिल्ताके ढुडन निकरत हए । जात जात हितुवा नदिया किनारे पुगत हए । नदियामे हिल्तक पिता जानोक धोबी लत्ता धोबय । हितुवा हिल्ताके लत्ता चिन लइ । हितुवा धीरे धीरे धोबिक थिन जाएके एकबरी मुमा रामराम कहत हए । धुविया चहुँकके कहि रामराम ओहो भनेजा पडिगए नत दाँत गरम करैया रहओँ । मोसे त बिचिगओ अपन माइस बचओ तव जानओ अभे कल्बा लैके अएहए । हितुवा कहत हए जैसे तुमसे बचो ऐसी माइसे बचहओ । ऐसि कहिके हितुवा सिलौटा तरे लुक्जात हए । धोबिक बैयर जैसी कल्बा लए ढिँगइ आत हए कि एकबरि हितुवा माइ रामराम कहत हए । धुबियक बैयर कहि रामराम भनेज पडिगए नत दाँत गरम करतो । धुबियक बैयर लोहक चनाके कल्बा लाइ । हितुवा से कहि लेओ भनेजा खालेओ । लोहक चना का खाबए । हितुवा कहि मय नदिया किनारे जाके खालेहओ । हितुवा चना लेके गओ चना नदियम खेपदइ कुल्ला करके आइगओ । हितुवा कहि लाबओ ममा जे कपडा मए बिटियामओ । धोबि कहि कल नया नचनिया आइ हए । बिटियान न जानैगे बेढम गरिऐहए । धोबिक बात सुनके हितुवा कहि मए फिर त जहे काम करत हओ । धोबी कहि बिटिया तओ । हितुवा हिल्ताके कपडा बिटियात हए और अपन उँगठि उनियक कुन्छ मे बाँध देत हए और कपडाके बिचमे धर देत हए । धोबी बे सब बिटोभओ कपडा हिल्ता के कोनोमे पुगाए दै ।
साँझके नाच करन ताहिँ हिल्ता समरन लागि । उनियक कुन्छ खोलके देखत हए बोमे उँगठि देखि । हिल्ता लै चिन । बो जानगइ हितुवा आइगओ हए । हिल्ता धोबिक बुल्बाइ और पुछि तिर घर कौन पहुना आओ हए । धोबि कहि मिर भनेजा आओ हए । औरे दिन अपन भनेजक नाच दिखान लैए । धोबी कहि अहँ । बो दिन हिल्ता मनमारे नाचि ।
दुसरे दिन साँझके धुविया हितुवाके लैके आओ और हितुवाके कपडा लैके हिल्तक कोनेमे पठाइ । हितुवा हिल्तक भेट हुइगओ । हिल्ता कहि तए मदरा बजान जानत हए कि नाएँ । हितुवा कहि न जानत हव । हिल्ता सल्लाह दै कि मए आज मदारिकके मनालेहओ तए उल्टासिधि ठठाए रहिए नाचन बालो मए हौवए । खुस हुइके जब इन्दल मामा पुछय तुम नचनिया पामओ कहिअओ । हितुवा हिल्ताके बातम हाँ मे हा मिलाइ । जब साँझ भओ इन्द्र खाह्रेम नाच सुरू होन लागो । हिल्ता घुँघट काढे आइ । मदारी मदरा बजाए हिल्ता नाचए । नाचतए नाचत हिल्ता मदारिक पेट ऐठ दइ । मदारिक लागि हगास । देखन बाले भरे । अधबिच नाच छोरत न बनैया मदारि कहि कोइ जानत हए मदरा बजान । सब कहएँ हम न जानत हए । फिर मदारि हितुवासे पुछि तए जानत हए रे । हितुवा कहि थोरीथोरी जानत हओ । मदारि कहि अब गठिगओ । जल्दि जल्दि हितुवक करेहाँओमे मदरा बाधके मदारि हगन भाजगओ । अब हितुवा उल्टासिधा मदरा ठठान डटो हए हेना हिल्ता घुँघट काढे नाचन डटि हए । ऐसो नाच मचो कि देखन बाले देखत रहिगए । जब नाच सपडो हए इन्द्र देव कहि ऐसो नाच मए अपन जिन्दगीमे कभि न देखो रहओ । मदारि तए जो माग बहे देमङ्गो । हितुवा कहि मोके और कुछ न चाहो महराज मोके नचनिया चाहो । इन्द्रराज कहि अब त बचन हारिगओ लैजा नचनिया । हितुवा फिरसे हिल्ता पाइगओ । दोनो अपन घर आए और खुसीखुसी रहन लागे ।

लक्ष्मी राना ( शिक्षक )
कैलारी गा पा ९ गदरिया

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