धनगढी,२७ असाड ।
हरेक समुदायको अपन रितिसंस्कृति, भाषा, भेष, चालचलन हए । हरेक पर्व दिन, तिथि या गते अनुसार मानत अथवा मनात आएरहे हएँ । जैसेकि फागु पुर्णिमा, जन्म अष्टमी और दिवारी, जब तिथि आत हए और बहे अनुसार मनात हएँ । विना तिथिको त ना मनात हएँ कहेसे चराँइ, असाढि, तिज जैसे रानाथारुके स्पेसल (खास) चाडपर्वके आपन तिथि अनुसार काहे ना मनात हएँ ? चाडपर्व तिथि अनुसार मनानसे समुदायमे हर्ष, उल्लासको वातावरणके संग चारौघेन खुशियाली छाए होत हए । बच्चासे लइके बुढेनमे फिर एक प्रकारको रोनक या फिर रौनक आत हए । दुसरी बात तिजतिउहार काहे मनात हएँ ? जा मनानको फिर कोइ उद्देश्य हुइहए तव न त हमर पुर्खा मनात आएरहे हएँ । चहु दुःखके रुपमे मनाइ होमय, चहु खुशिके रुपमे या फिर बध्यताके रुपमे मनाइ होमय आखिर मनाई तओ त आज हमर संस्कारके रुपमे चलत अएरहो संस्कृतिके रुपमे अभय तक मानत आएरहे हएँ ।
संस्कृति हमर बध्यता या दासत्व ?
रानाथारु समुदाय पहिलेसेहि एक संगठित समुदायके रुपमे रहए । संगठन या समाज चलान ताँहि अगुवाको महत्वपुर्ण भुमिका होतहए कहेसे रानाथारु समुदायमे पधना, भलमन्सा, गौटेहरा भर्रा प्रथा पहिलेसे चलत अएरहो हए । पधना गाँव बैठात रहए कहेसे भलमन्सा व्यवस्थापकियको भुमिका निभाद रहए और गौटेहरा भर्राको सल्लाह बिना गाँव बैठान संभव ना होत रहए । गाँवमे कोइ पर्व मनान हए कहेसे गाँवको पधना अपन गाँवको अवस्थाक् बारेम भलमन्सा या चाकर या फिर गौटेहरा भर्रासे पुछके सरसल्लाह करके पर्व मनानके दिन धरदेत रहए, दुसरो गाँवसे खास मतलब ना करत रहएँ । पधना, भलमन्सा, गौटेहरा भर्राक सल्लाह अनुसार चाकर गाँवमे बुलात हए और गाँव भरके लोग चाडपर्व मनात हएँ । जक मतलव हमर चाडपर्व दासत्वके रुपमे मनात रहएँ ? पधना, भलमन्सा, गौटेहरा भर्रा जब कहि तबहि मनान नत ना मनान । जबहि मनलागो तबहि मनान तिथिको कोइ महत्व नाए । और बहुतसे गाँवमे त जहु कहत हएँ अरे एक दिन हए मनानए । आज करंगे तओ कल करंगे तओ करनय होबैगो काम करन हए काहेन आजय करडारएँ । आसपासके गाँवमे कब मनैया हएँ तिथि कब पडि हए सरसल्लाह करन छोडके, तिथिसिथि चहुजो होबय आइपडि त करबैठत हएँ ।
मिर सब जनैसे अनुरोध हए अगर करनय हए कहेसे तिथिके मानके करएँ करन त एक दिन करनय हए पर तिथि काहेक ताँहि हए ? दिन त सब भगवानके बनाए हएँ पर कौन दिन खास दिन हए बहे दिनके पुजापाठ या शुभ मानत हएँ और बहे तिथिके रुपमे मानो गओ हए । हमर पुर्खा तिथि अनुसार मेला पर्व मानत हएँ, पुजापाठ या पर्वके ताँहि तिथि अनिवार्य हए कहेसे काहे ना हम अबसे एक संग तिथि और रिति अनुसार संस्कृति मनामएँ । कोइ फिर पर्वके बध्यतासे या दासत्वके रुपमे ना मनामएँ । एकय तिथिमे एकय मनोकंछासे हर्ष, उल्लाससे मनामएँ ।
संस्कृति समुदायको परिचय देत हए । कौन समाजको रितिरिवाज कैसो हए, बुक अपन पहिचान हए । जैसेकि रानाथारुक पहिचान फागु पुर्णिमामे ३८ दिन तक होरी पर्व मनाएके होत हए । दशै पर्व अन्य जातके लोग एक महिना तक मनात हएँ कहेसे छठ पर्व मधेशी लोग बहुत धुमधामसे मनात हएँ । ऐसी करके और पर्व फिर अन्य जातके लोग बडो महन्वके साथ मनात हएँ । हमर संस्कृति हम इकल्ले ना मनाएके दुसरे समाजके लोग फिर हमर संस्कृति मनामएँ । जैसे कि आज हमर समाजमे पश्चिम संस्कृति भित्र्यान लगे हएँ । जन्म दिन मनामए बढिया बात हए पर जा का हमर संस्कृति हए ? दशमी रानाथारु समुदायमे ना मनात रहएँ पर अब अधेसे जद्धा लोग दशै मनान लगे । जा बढिया बात हए एक दुसरेक पर्व माननसे भाइचाराको भाव अफनत्व ग्रहण करनो अच्छि बात हए । पर जैसे दुसरेक पर्व आज हमर समुदायमे भित्र्याए रहे हएँ उसीयाए अपन समुदायकि बढिया संस्कृति जौन आपनके चिन्हाइ रहिहए बुक दुसरे समुदायके लोगनमे परिचित तक न करानो जा कहाँको जायज हए । जा से हमर संस्कृति कैसे नयाँ पुस्तामे हस्तान्त्रण होबैगो ? मिर प्रश्न समाजमे अगुवाइ करनबारे अगुवनसे हए । बध्यता या फिर दासत्वमे रहिके पर्व काहे मनान, पर्व त हाँसिखुशीसे सबके संग धनीगरिबके संगोहेके मनान हए । बाँकि………….