कविता “धुंधली धुंधली आस”

२०७८ मंसिर २७, सोमबार २०:०६
कविता “धुंधली धुंधली आस”

धनगढी,२६ अगहन ।

दओ वचनके भुलकर करिगय सत्यानाश
चुगल चुगली करके बने हएँ उनके खास
पान सुपारी खाएके हुइगय हएँ सब लास
रहिगओ हय अव धुंधली धुंधली सी आस

शिरयधरो हय दुखके बादल रोय रहे नरनार
जीवनकी जा डुबती नैया कौन लगाबय पार
जितय जाओ नोँच नोँके खाइ हय कच्चे मास
रहिगओ हय अव धुंधली धुंधली सी आस

जौनकी छायाम पले बडे और झुला झुलरहे
बेहीँ देखओ षड्यन्त्रसे अच्छे भले पेड काटरहे
न्यायकी मुरत देख रही हय बनबैठी हय लास
रहिगओ हय अव धुंधली धुंधली सी आस

कौवा बोलय कोयलकी बोली और बुलाइ पास
मनमे पाप सिर्जके लगो हय सबके नास
पान सुपारी खाएके हुइगय हएँ सब लास
रहिगओ हय अव धुंधली धुंधली सी आस

समाप्त