लेखक ः पुनम राना/धनगढी , ४ सावन ।
नदियाकी लम्बाई और समुन्द्रकी गहिराई नापनो कोइ आसान
बात न हए । जहेके मारे राना थारु समुदायकी दिदि बहिनिया अपने
ददा, भैया और नदियाकी धार जैसी सरल जिवनकी कामना करत हए
तिज मे । तिज पर्वको वडो महत्व हए राना समुदायमे । तिज महिलाके
ताहीँ समानता और महत्वको समिक्षा हए । यितकय ना जो तिउहार
मातृभुमि प्रतिको प्रेम, मातृस्नेह और राष्ट्रवादको प्रतिक भी हए ।
नेपालको इतिहासमे राजकुमारी भृकुटी, जब विवाह करके तिब्बत
गइ तौ संगमे नेपालकी मिट्टी लैके गइरहए करके पढन मिलत हए
।
ऐसी करके तिज पर्व मे राना दिदिबहिनिया पूरी निष्ठासे अपने
जन्मघर के ताहीं उपवास रहते हए । अपने संगै बडे भए ददा भैया
के सुखी जिवनकी कामना करत हए । जो तिउहार हमए अपनी
जन्मभुमि और मातृस्नेहको महत्व कितनो होथए करके असल सन्देशो
देत हए । जन्म घर सबैके ताहीँ प्राणसे भी प्यारो होत हए । तिज
मनान मैको जानपेती दिदिबहिनियनके आँखीमे एक अलग चमक होत
हए । विहा हुइके विछडी भइ दिदिबहिनिया फूवा भतिजिया और
संगी संगिन सब एक जगहा मिलनको मौका पात हएं ।
सामनको डोला डोलके गीतके संग अपनो वर्षभरको दुख भुल जातहए
। एक खुशीको माहोलमे अपने कुछ दिन वितान पाहए ।
तिजके दिनमे उपवास रहेके सोह्रा श्रृङ्गार करत हए । ढीगैकी
नदियामे झुड्की और प्रसाद विषर्जन करके एक सुभचिन्तक की
भुमीका निर्वाह करत हैं । मानवताको आभास जुडो हए जा पर्वमे ।
निःश्वार्थ भावना और आत्मीय प्रेम भौतिकवादको जो समुदायसे
काफी दूर रखत हए ।
बाँकी हिन्दु समाजमे तिजमे महिला अपने ताहीँ असल वर और
जिवन साथीकी लम्बी आयुकी कामना करत हैँ । और राना समाजमे
जो त्योहार खास करके मैके के ताहीं मनाओ जात है । तबही राना
समाजमे तिजको महत्व अलग हए । राना समुदायमे महिलावादको भि असर
कम पडोभौ देखन मिलत है । दिदिबहिनियाकी इकल्लो भुमिका न हुइके
ददाभैया अपनी दिदि बहिनियाके मान और सत्कार करत हए और महिला
प्रतिको स्नेह और समानताकी भावना पैदा करत हए ।
तिज सबए समुदायको मातृृस्नेह भाइचारा और मानवताको संदेश देत हए । राना समुदायमे एकताको प्रतिक हए । तिज सबए जनि एकै दिनमे जा त्योहार मनात हैं । एक गाँवमे एक डोला सबै प्रयोगकरत हए और पूरे गाँवकी महिला संगै झुड्की पुहान जात हए ।
जो पर्व हमरी एक चिनारी हए । और मातृभुमि प्रतिको प्रेमको संन्देश हए ।
समाप्त