कलम से ,ओम प्रकाश राणा (पधना /प्रधान) निझोटा, गौरीफण्टा, खीरी, उ.प्र.
राणा/राना थारू समाज का पिछडेपन का कारण राजनैतिक पिछडेपन का होना मुख्य कारक है, जिसके कारण समाज का तेजी से पतन हो रहा है। जोकि समाज के लिए चिंता का विषय है। मै अपने समाज के बुद्वजीवी, जनप्रतिनिधि, एवं समाजसेवी जनों से विनम्र अपील करता हूॅ कि, समय रहते चिंतन कर संगठित हों।
पिछडेपन के मुख्य कारक निम्नवत् है –
- भौगोलिक विखण्डता।
- शोषण और हासिये पर रहना।
- शिक्षा और जागरूकता की कमी।
- आर्थिक पिछडापन।
- सांस्कृतिक और सामाजिक अलगाव।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्क का अभाव।
- संगठन और एकता की कमी।
1. भौगोलिक विखण्डता:- इतिहासकारों का मानना है कि राणा थारू समाज महाराणा प्रताप के वंसज चित्तौडगढ थार राजस्थान से पलायन कर जिला ऊधमसिंह नगर,उत्तराखण्ड, जिला खीरी उत्तर प्रदेश,भारत तथा नेपाल राष्ट्र के सुदूरपश्चिम प्रदेश के कैलाली व कंचनपुर में मुख्यतः निवास करते है। जिनकी जनसंख्या लगभग 4.5 लाख है। अलग देश अलग प्रदेश होने के कारण संख्या बल कम रहा जिसके कारण राजनैतिक में प्रभावहीन रहे।
2. शोषण और हासिये पर रहना:- ऐतिहासकि रूप से राना थारू समाज को भूमि एवं संसाधनों से वचिंत रखा गया जिसके कारण आर्थिक एवं समाजिक विकास प्रभावित रहा जमीदारी प्रथा और बाहरी शासकों के अधीन शोषण होता रहा, भरणपोषण हेतु पलायन कर जंगलों में गुजर बसर करते रहे विषेश ऐतिहासिक कारण यह है कि राना थारू समाज का अभी तक कोई इतिहास ज्ञात नही हो पाया है। भौगोलिक विखराव के कारण राजनैतिक शक्ति क्षीण रही।
3. आर्थिक पिछडापन:-धन के अभाव के कारण राजनीतिक संगठनों और चुनाव अभियानों में प्रभावी भूमिका निभाने में अस्मर्थ है।
4. राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अभाव:- राजतीतिक दलों ने हमारी समस्याओं को प्राथिमिकता नही दी, और राजनेताओं का सहयोग नहीं मिला । तथा आरक्षण नीतियों व अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ पूरी तरह नहीं मिला।
5. शिक्षा व जागरूकता की कमी:- थारू समाज शिक्षित तो हुआ परन्तु उच्च शिक्षा तक नहीं पहुचें तथा जागरूकता के अभाव में पुर्व में अनपढ समाज से भी अधिक अलगाव राना थारू समाज में देखने को मिल रहा है जिसके कारण राना थारू समाज राजनीत में प्रवल होने के बाउजूद भी राजनीत में विफल है। नेपाल में राना थारू समाज संख्या में अधिक होने के कारण राजनीति में अच्छा प्रर्दशन/प्रतिभाग किया। नेपाल मे राना थारू समाज संसद, विधान सभा, तथा नगर पंचायत स्तर की राजनीति में हावी हो गये थे। किन्तु वर्तमान समय में मात्र नगर पंचायत स्तर तक ही सीतिम है। जिसका मुख्य कारण उच्चस्तरीय नेताओं में अलगाव की भावना व्याप्त है। जिसका उदाहरण नेपाल में राना थारू समाज के राष्ट्रीय स्तर के संगठत निर्माण में देखने को मिला, एक अच्छे समाज के लिए विपक्ष होना अतिआवश्यक है। किन्तु राष्ट्रीय संगठत के समान्तर संगठन निर्मित हो जाना राजनीतिक कटुता का निम्नस्तर तक गिरने का वोध कराता है। राना थारू समाज के लिए अच्छा नहीं है। राजनीतिक अगुआ में अलगाव होने के कारण उन पर अटूट भरोसा करने वाला राना थारू समाज विखर रहा है। जिसका परिणाम राजनीतिक प्रतिनिधुत्ता में अत्यधिक गिरावट आयी है। तथा राना थारू समाज मात्र नगर पंचायत तक सीमित रह गया है। ऐसे ही उच्चस्तरीय नेताओं में विखराव रहा तो अगले निर्वाचन तक नगर पंचायत स्तर में भी पदाशीन नहीं रह पायेंगें। जोकि चिन्ता का विषय है।
6. संगठन में एकता एवं जागरूकता की कमी:- राना थारू समाज माध्यमिक शिक्षा तक अत्यधिक सीमित है। उच्चशिक्षित न होने के कारण जागरूक नही हुए जिसके कारण संगठन में कमी आयी है।
स्मरण रहे पुरातन में तपस्या से शक्ति प्रदान होती थी लेकिन आज मत प्राप्त होने से शक्ति प्रदान होती है अपनों को अपनों द्वारा मत न देने के कारण राना थारू समाज कमजोर हो रहा है।
राना थारू समाज को राजनैतिक रूप से सक्षम एवं मजबूत बनाने हेतु संगठन का ढांचा नये सिरे से बनाना होगा।
ओडा/ पंचायत स्तरीय संगठन
मतदाता सूची के प्रत्येक पन्ने से सदस्य जिसमें 60 प्रतिशत युवाओं को मनोनीत किया जाय।
ओडा/ग्राम पंचायत स्तरीय राना थारू संगठन
नगर पंचायत/ब्लाक स्तरीय राना थारू संगठन
जिला स्तरीय राना थारू संगठन
प्रदेश स्तरीय राना थारू संगठन
राष्ट्रीय स्तरीय राना थारू संगठन
अन्तर्राष्ट्रीय राना थारू संगठन
उपसंहार – यह कि राना थारू समाज के उच्चस्तरीय नेतागण दलगत राजनीत से परे अपनी कौमी एकता को प्रगण करें तभी हमारे राना थारू समाज का उत्थान होगा, शायद हम अनुवानसिक रूप से 50 साल पिछडे हैं हमारी सोच प्रवल नही है। जिनकी सोंच प्रबल है।वह कहंीं न कहीं निज प्रलोभन में आकर समाज को गति नहीं दे पा रहे है। आइये अपने राना थारू समाज के उत्थान की अवधारण को लेकर शिक्षित हों, संगठित हों, और संघर्ष करें