नेपालमें तराइके कैलाली ,कंचनपूर, बर्दियाऔर भारतके उत्तर प्रदेश उत्तराखण्ड जिलामे रानाथारु जाती सदियौ से बैठत आए हए । जे रानाथारुनके अपन अलग रहनसहन चालचलन अपन अलग भेष्भूषा पैंधन रिती संस्कृति बानी बृहोरा रहए । रिती संस्कृति भितर बहुत जाद्यी नाच गित रानाथारुको हस्तकला और खेलसे लैके रानाथारुक साहित्य रानाथारुक उत्पत्ति उत्थान समाबेश हए । जौन गैर रानाथारुनके रितीसंस्कृतीसे एकदम अल्गय देखापड़त हए । जा रानाथारुक रिती संस्कृतिके गहिरो और अल्गयसे खोतोल्के देखतहँए त जामे रानाथारुको वास्तबिक पहिचान और अमूल्य बात हमर सम्पतिके रुपमें लुकी हए ।
जौन रानाथारुक पहिचान इकल्लो नाए पूरा देश नेपालमे पहिचान करबा देनबाली सम्पति हए । और जेहे सम्पतिसे हम अभयतक नेपाल लगयत भारतमे चिन्हात अए हँए । जाके संरक्षण संबद्घन करनके ताँही सब अपन अपन ठाउँसे प्रयास करदेन पड़ो । और प्रयास करत अए हँए । कोइ पत्रपत्रिका मार्फत , रेडियो मार्फत ,संघसंस्था मार्फत से करत आए सबकी अलग अलग क्षत्र हए । ऐसिय सब कोइ अलग डगरसे नेगनसे जौन ठाउँमे पुगंगे और पुगन रहए पर बो ठाउँमेँ नपुपाए तवहिक मारे सबसे एक दुस्रे जनै से सहकार्य करत जान जरुरी हए । और जाके लोप होन नादेनके ताही जाके बचानके ताही अच्छो बाँध(मेड़ा) बनान के ताँही सबयको कर्तव्य हए । यिनही के मध्य नजर करके अपन ठाउँसे कुछ मजबुत बाधके रुपमे “आँगनबारी मिडिया प्रा . लि “ द्वरा संचालित रानाथारु डटकम बनाए हए । रानाथारु डटकम दुइ भाषा ( रानाथारू अाै नेपाली ) मे संचालनमें लानको मुख्य कारण कहोक संस्कृति बचान हए ? सबए जाता जातीनमे, समाजमे मुह दिरवान और चिन्हान ताँही । औरकि फिर अपन रिती अपन संस्कृति हए वीसिएक हमर रानाथारुक पहिचान फिर रानाथरुक संस्कृति भितर लूको हए । जब रितीसंस्कृत हराजए हए बेहे दिनसे हमर पहिचान फिर हराजावैगो ।
हम काहन नपामंगे कि हम रानाथारु हए और हम थारुवा हए । तवसे अभएक रानाथारुनके संस्कृतिक स्थिती देखत हए तव पहिलेके तुल्नामे दिनप्रतिदिन हरात जात हए । नयाँ पूस्ता (पिढ़)के आदमी नयाँ नयाँ देश विदेश के गैर रानाथारुक रिती संस्कृति मनात आत हए ।हम बहे पूरानो पूर्खानके छोडके गए शहिदनके बारेम उनके बनाइ रिती संस्कृती के अध्ययन काहे करन जरुरी हए । कहेसे हम रानाथारु आखिरमे हए का ?हमर उत्पत्ती उत्थान कैसेक भव अब हमर समाज कौन अवस्थामे हए कहन ताही और जानन ताही हमर बिगत पूर्खनके बारेम जनन जरुरी हए देखत जामय कहनसे हमर नयाँ आनबाले पूस्ता फिर कितय जामय काहेकी अच्छि डगर देखान और अच्छो डगर बनन अब हमर सबके काँधमे हए । अगर हम चकली डगर बनाएके नदिखाय पाए कहेसे हमर नयाँ पूस्ता संस्कृती बचान और इतिहास बनान डगर भूल जामंगे ।