रानाथारू सामुदायमे एक महिना ८ दिन खेलत हाेरी

१२ चैत्र २०८०, सोमबार
रानाथारू सामुदायमे एक महिना ८ दिन खेलत हाेरी

 लेखक ः बासमती राना
परिचय
नेपाल एक बहुभाषिक, बहुजातिय, बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक विविधतामे एकतासे बधोँ भओ देश हए । राष्ट्रिय जनगणना वि.स. २०६८ को तथ्याङ्क अनुसार नेपालमे १२५ जातजाति और १२३ भाषाभाषिकाके आदमि बसोबास करत आए हएँ । जेहि तमान जातजातिन मैसे राना थारु जाति फिर एक हए । नेपालक सुदूरपश्चिम प्रदेशके दुई जिल्ला कैलाली और कञ्चनपुरके करिबन १३५ गावँ और परोसि देश भारतके उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्डके कुछ जिल्लनमे समेत सदियौंसे आदिवासीके रूपमे बैठत आए राना थारुनको अपनो अलग पहिचान हए । राना थारुनके अपने अलग मौलिक परम्परा, भाषा, धर्म, कला, संस्कृति और संस्कार हएँ । अपने मौलिक तिउहार, सामाजिक परम्परा, रितिरिवाज और चालचलनमे रमानबाले आदिवासी राना थारु बिलकुल अलग पहिचान बनाए बसोबास करत आए हएँ । परमपरागत रूपमे मनात आए तमान मौलिक तिउहार मैसे होरी तिउहार राना थारु समुदायको सबसे बड़ो तिउहारके रूपमे मानो जात हए । जहेके बारेमे खोज करके जा लेखमे चर्चा करोगओ हए ।
राना थारुको सबसे बड़ो तिउहारके रूपमे होरी
सामाजिक परम्परा, रितिरिवाज और मौलिक संस्कृतिके धनी मनात आए राना थारुनके तामान मौलिक चाड तिउहार मैसे होरी(फागु पूर्णिमा) सबसे बड़ो तिउहारके रूपमे मानो जात हए । माह महिनाकि पुरनमासिसे शुरु हुइके होरीक टिका(फागुनकि पुरनमासि) पिच्छु आठबारो तक मनानबालि बहुतए लम्बि होरी तिउहार राना थारु समुदायके ताहिँ बडि़ लोकप्रिय बनि हए । खास करके होरीके “होरी धरन, जिन्दा होरी, टिका, मरि होरी और खकडेहरा” कहिके जे तमान रूपमे करिब ३८ दिन तक लम्बि होरी मनानियाँ परम्परा परापुर्व कालसे प्रचलनमे रहि आइ हए । माह महिनाकि पुरनमासिमे गावँके सब मिलके होरीको झुँका(पुतला) बनात हएँ , फागुनकि पुरनमासिमे होरीको पुतला दहन करत हएँ और बासे पिच्छु अठ्बारोके दिन खकडेहरा तिउहारके रूपमे विशेष महत्वके साथ होरीकि विदाइ करत हएँ । होरीको पुतला बनाओ गओ दिनसे लैके टिकाको दिन तक तीस दिन जिन्दा होरी और टिकासे लैके खकडेहरा तक आठ दिन मरि होरी विशेष महत्वके साथ एक आपसमे खुशी बाँटके होरी खेलनको चलन चलो आओ हए । सामुहिक रूपमे रोज दिन पालिसपाला एक पिच्छु औरो घरमे जमा हुइके ढोलको डङ्का बजातए गीत गाएके होरी खेलके खुबए रँमात हएँ । विशेष महत्वसे भरि राना थारु होरीमे फरक फरक समय, अवस्था और प्रहारसँगए गीतकि साखि और तर्ज फिर फरक फरक होत हएँ । बेहे अनुसार होरी खेलनियाँ तरिका फिर फरक फरक हएँ । सदा होरी, लौँड़ालौँडि़यनको ठड़ौँवा होरी, लौँड़ालौँडि़यनकि लोहोकौँवा होरी, कलाकार और खिचडि़ होरी आदि राना थारुनकि होरी खेलनकि तरिका हएँ ।
होरी धरन (होलीको झुँका वा पुतला बनान)
होरीको शुरुको दिन कहेसे होरीको झुँका वा प्रतिक स्थापना करनको दिन हए । माहकि पुरनमासिक दिन सन्झि गावँसे बाहिर जहाँ गावँको कुलदेवताकि भुइँया होत हए बेहेके जौड़हिँ खास करके बेहेके अगार (पुर्वी दिशा) वा औरु कोइ ठिहामे भगवान श्रीकृष्णको जन्म स्थान मथुरासे होरी बुलानके मान्यतामे गावँके लोग ददाभैया अपन अपन घरसे गइँया, बरधा वा औरु कोइ फिर डँङ्गरको गोबरको कण्डा लगायत कठ्ठा, कठिया, लाहिको सुको टुटरो लाएके एकए ठिहामे जमा करत हएँ और गावँको चाकर घर घरसे उगाहएके लाओ भओ पुजना सामग्री भेँट(हुम्म मसाला, जौ, घ्यु, तेल आदि), अगरबत्ती और मिठाइ चढाएके गावँको गवँटेहरा भर्रा वा होरी धरनकि विधि प्रक्रिया जानो भओ कोइ लोग फिर विधि प्रक्रिया पुगाएके पुजना करके होरीको झुँका वा प्रतिक(पुतला) स्थापना करत हए । कञ्चनपुर, पुनर्वास न.पा.१ गणेशबस्तीके अग्रज मोढि़ और बुद्धिजिवी श्री केशर रानाकि कहाइ अनुसार होरीको प्रतिक खासौँखास गावँसे बाहिर गावँको रक्षक देवीदेवताको भुइँयाके अगार(पुर्वी दिशा) चहुँ जितै फिर धर लेत हएँ । उनहिके भनाइ अनुसार ऐसे होरीको झुँका बनानियाँ जा परमपरागत चलनसे “होरी धरन” कहिके कहात हएँ । जाको मुल उद्देश्य होरीके मथुरासे अपनो अपनो गावँ तक बुलानो वा निमन्त्रणा करनो हए कहिके पुर्खासे मानत आए एक जनविश्वास रहो हए । होरी धरनपेति और धर डारत हएँ तओ हुना उपस्थित सबए मिलके ढोल बजात हएँ, गीत गाएके खुब होरी खेलके मनोरञ्जन करत हएँ । लालझाडी गा.पा.५, देखतभुलीके गुलाबी रानासे होरी धरनियाँ गाइ भइ गीतकि कुछ अंश………
“मथुरासे होरी आइ, खेलत गोपी ग्वाल लाल मथुरासे होरी आइ ।
कौनु नचए कौनु गाबएगो, कौनु नचए कौनु गाबएगो,
कौनु बजाबए ढोल लाल, मथुरासे होरी आइ ।
मथुरासे होरी आइ…………………………………………।”

जिन्दा होरी


होरी धरो गओ दिनसे लैके एक महिना अर्थात फागुनकि पुरनमासि तक खेलनबारि होरीसे जिन्दा होरी कहात हएँ । रोजिना खास करके सन्झिके खानु खाए डारत हएँ तओ रातमे गावँको कोइ एक घरमे जुरके सबए ददाभैया, दिदीबहिनिया मिलके जिन्दा होरी खेलनको चलन परम्परागत रूपमे चलो आओ हए । कञ्चनपुर, पुनर्वास न.पा.१ गणेशबस्तीके दुसरे गायक श्री व्रmेसन रानाकि कहाइ अनुसार होरी धरन ताहिँ बैयर वा लौँडि़यनको जानको चलन नाहए जेहे मारे होरी धरो गओ दिनके ठिक पिच्छुको दिन जिन्दा होरीकि पहिलि दिनमे पहिलि गीत गाएके माथुरासे होरी बुलात हएँ । बिनहिसे गाइ भइ लाँैडि़यनकि जिन्दा होरीकि पहिलि गीतकि कुछ अंश
“जाएके टिका लगामङ्गी जुरके होरी उतारिँ
कहाँसे होरी उतारिँ हो लालए, कहाँ रहि गड़छाए
मथुरासे होरी उतरि हो लालए
गोकिल रहि गड़छाए रे मथुरासे होरी उतारि हो लालए…………….।।”
होरी डुँगन(होरीको पुतला दहन)

राना थारु होरीको औरो महत्वपुर्ण दिन कहेसे धरि होरीको झुँकामे आगि लगान वा पुतला दहन करनबारो दिन हए । जासे होरी डुँगन कहात हएँ । फागुनकि पुरनमासि वा टिकाको एक दिन अग्गु सन्झि सबए गावँके लौँड़ा और लोग जुरके गावँ बाहिर धरि होरीको झुँकामे आगि लगाएके होरीक पुतला दहन करत हएँ । जा कामके ताहिँ चाकर घर घरसे उगाहएके लाओ भओ पुजना सामग्री(भेँट)से गावँको गवँटेहरा भर्रा सबसे अग्गु होरीक पुतलामे पुजा करत हए, फिर सब मिलके आगि लगाएके दहन करत हएँ । होरी डुँगन बेरा गीत सँगए ढोलिया ढोल बजात हए और सबजनि मनोरञ्जनके ताहिँ हँसिखुसिसे होरी खेलत हएँ । होरी डुँगनको चलन पुर्खौसे चलो आओ हए । होरीमे आगि लगानपेति गुलाबी रानासे गाइ भइ गीतकि कुछ अंश
“ढोला दमो बजाइ रे, ढोला दमो बजाइ रे, ढोला दमो बजाइ रे ।
अरे हाँरे लिख चिठिया पुरबैको भेजि रे ।
पुरबके राजा आए रे ढोला दमो बजाइ रे ।
अरे हाँरे लिख चिठिया पश्चिमको भेजि रे ……………………………।।”
होरीको टिका(फागु पूर्णिमा)

राना थारु समुदायकि लम्बि तिउहारके रूपमे मानत आए होरीको आकर्षणको केन्द्र मानो गओ दिन फागु पूर्णिमा वा टिकाको दिन हए । जा दिन सबेरेसे घर आँगनमे चौका लगात हएँ और अपनओ फिर हँदात हएँ । अग्गुको दिन सन्झि होरीक प्रतिकमे लगि आगि सुके कण्डा होनके कारणसे सबेरे तक आगि पजरत रहात हए तबहि सबेरेसे जाएके हुनएसे बेहे आगि लात हएँ और बेहे आगिसे आगि पजारके गुनगुनो पानी करके छोटे छोटे बालकनके हँदबाए देत हएँ । ऐसो करनसे बालकनके रोग ब्याधि नालागत हएँ, अच्छे बानी व्यहोरा और ज्ञानी होत हएँ कहिके पुर्खौसे जनविश्वास जुगो हए । कुइ गावँमे होरी दहन करिभइ आगि लाएके आगिके नाफुँकके चौका लगि कोरि रुसैयामे खानु फिर बनाएके खानको परम्परा हए । ऐसि होरीको टिकाके दिन सबेरे सबए सरसफाइ करके मिठो मिठो खानियाँ चिज पकाएके खात हएँ । बेहे दिन अखबन्नि बेरा करिव ३/४ बजे गावँके सबए ददाभैया, दिदीबहिनियाँ अपने अपने परम्परागत पहिरनमे सजधजके दहन करि भइ होरी(होरीकि अगियारि) ठिन जाएके चामर, गेहुँ वा जौ चढाएके जरे कण्डा और कठ्ठा कठियाको भुवाको टिका लगात हएँ । अगर घरके सबए सदस्य होरीको टिका आएके लगानको अवस्था नाहोत हए तओ आए भए घरके औरे आदमि होरीको टिका लैजाएके लगाए देत हएँ । हिन्दु संस्कार अनुसार औरे जातजाति तरहा राना थारु फिर तमानसे रङ्गके होरीको टिका फिर लगात हएँ पर हमर परम्परामे दहन करिभइ होरीक प्रतिकमे भए असलि कण्डनको भुवाको टिकाके असलि होरीक टिका मानो जात हए कहिके अपन विचार लालझाडी गा.पा.१, देखतभुलीका अग्रज बुद्धिजिवी तथा समाजसेवी श्री ठगी राना धरि हएँ । उनकि बतकहि अनुसार जा दिन बर्ष भरेक दुःख कष्टनके भुलके, आसपरोसमे भए आपसी लडाई झगडा और हर तरहाके मनमुटाव छोडके ”रामराम” करके मिलाभेट करनको दिन हए । मनमे होनबाले तमान लोभ लालच, रिसराग और गलत विचार छोडके हँसके एक आपसमे खुशी बाँटनबारो दिनके रूपमे होरीको टिकाको दिनके लेत हएँ । ऐसि राना थारु होरी भरेको विशेष दिनके रूपमे रहो होरीको टिकाको दिनसे मरि होरी खेलनको चलन चलत आओ हए । होरीको टिका लगानसे पहिले आगि बुझान और फिरके टिका लगान ताहिँ खेलनबारि होरीमे गानबारि गितकि अलग अलग राह और साखि होत हएँ । जेहि गीतकि कुछ अंश हिँया हएँ ।
डुँगि होरी बुझानियाँ लौँड़ा÷लोगनकि गीत
“ललरे, लल दुभ लगि दुभ सारिया, लल दुभ लगि दुभ सारिया
होरी बुझावन जाएँ रे, होरी चलि घर आपने ।
और हमरो शिवा जुहारन रे, सो हरे हरे सिता रामसे ।।
ललरे, लल कौन के हात गँगाजल पानी, लल कौन के हात गँगाजल पानी,
और कौन बुझावन जाएँ रे, होरी चलि घर आपने ।।
ललरे, लल भलमन्सैयाके हात गँगाजल पानी …………………..।।”
डुँगि होरी बुझानियाँ लौँडि़या/बैयरनकि गीत
“दुब धरि दुब सरिया होरीमे आग लगि
हुइगई पुरनमासि होरीमे आग लगि ।
पधनियाके हातमे गँगाजल आग बुझान चलि ।।
दुब धरि दुब सरिया होरीमे आग लगि
हुइगइ पुरनमासि होरीमे आग लगि ।
भलमन्सैयाके हातमे गँगाजल आग बुझान चलि ………………।।”
टिका लगानियाँ गीत
“ललरे लल मेरो रे भैया ढोलिया, ललरे लल मेरो रे भैया ढोलिया,
गहगर ढोल बजाइन रे, होरी चलि घर अपने ।।
ललरे लल कौन गाबए, कौन नँचए, कौन बजाबए, ढोलन रे, होरी चलि घर अपने ।।
ललरे लल राधे नँचए, गोपी गाबए, लल राधे नँचए, गोपी गाबए, किसन बजाबए, ढोलन रे, होरी चलि घर अपने ………………………..।।”

मरि होरी

होरीको टिकाको दिनसे लैके आठौं दिन खकडेहरा तक खेलनबारि होरीसे मरि होरी कहात हएँ । खासमे मरि होरीके दिनमे अखबन्नि बेरा और रातमे खेलत हएँ । विशेषतः होरी दहन करो भओ ठावँसे गावँके सबए मिलके होरीको टिका लगाएके मरि होरीके औपचारिक रूपमे गावँमे लैजात हएँ और सबसे पहिले गावँको मुखिया पधना, झलमन्सा वा चाकरके घरमे जाएके होरी खेलनको चलन हए । मरि होरीके सबसे पहिले गावँ तक लौँडि़या छैला और लौँड़ा मतबरियाके रूपमे लैजात हएँ । जे छैला और मतबरिया लैजानपेति डगरभर गीत गात हएँ और ढोल बजाएके होरी खेलतए जात हएँ । मतबरिया और छैला लैजानियाँ गीतकि कुछ अंश
लौँड़ा/लोगनकि मतबरिया लैजानबारि गीत
“मतबरिया मेरो ललन, मतबरिया मेरो ललन ।
मतबारे मतबरिया उतरे बागनमे, मतबारे मतबरिया उतरे बागनमे ।
मालिन बेचन जाएँ रे मतबरिया मेरो ललन …………………………।।”
लौँडि़या/बैयरनकि छैला लैजानबारि गीत
“आनौटे छैला चाले रे, आनौटे छैला चाले रे ।
मेरे माँथेन घुँगटा बिछाड़े आनौटे छैला चाले रे ।
मेरे भायेँन बिँदिया बिछाड़े आनौटे छैला चाले रे ।
मेरे नैनमे सुरमा बिछाड़े आनौटे छैला चाले रे…………………………।।”

ऐसि करके लाँैड़ा लाँैडि़या अपन अपन साखि और राहमे गीत गाएके औपचारिक रूपमे होरी पधना, भलमन्सा वा चाकरके घरमे लैजात हएँ । हुनए सन्झिसे लैके रात तक मरि होरी खेलत हएँ । होरी खेलनपेति घरको मालिक होरीक प्रसादके रूपमे हुरखिल्ला और होरी दिखाइया सबएके मिठाइ (भेली वा गुड) बाँटनको चलन चलत आओ हए । ऐसि करके हुरखिल्लनके अपन गक्ष्य अनुसार दक्षिणा स्वरूप फगोहाके रूपमे कुछ नगद रुपैया देनको चलन फिर चलो आओ हए । गावँ भितर लैजाइ भइ मरि होरीकि पहिलि रातमे गानबारि गीतकि कुछ अंश
“सो हाँरि बिरहन नैना तुम्हारे रसु भरे ।
कैसे करके रस लेएँ बिरहन नैना तुम्हारे रसु भरे ।
सो हाँरि बिरहन तुम अम्मा बनि जाओ ।
हम सुवना बनि जाएँ, बैठएँ तुम्हारि डारमे ।
ऐसे करके रसु लेएँ, बिरहन नैना तुम्हारे रसु भरे ……………………।।”
राना थारु सामुहिक रूपमे मरि होरीके पालिसपाला रोज दिन अलग अलग घरमे आठ दिन तक अखबन्नि बेरा और रातमे विशेष तरिकासे खेलत हएँ । मरि होरी खेलनबारे घरमे खेलन ताहिँ एक दिन अग्गु वा बेहे दिन दुफहारमे हुरखिलनि दिदीबहिनिया होरी खिलान ताहिँ मनान पड़त हए । घरको मुखियाको स्वीकृतिमे इकल्लो बेहे घरमे अखबन्नि बेरा और रातमे होरी खेलन आत हएँ । अगर स्वीकृति नामिलो कहेसे गावँएको दुसरो घरमे होरी खिलान ताहिँ मनान पड़त हए । घरको मुखियाको स्वीकृतिमे रातभर होरी खेलनकि अनुमति देत हएँ तओ रातभर होरी खेलनको चलन फिर चलो आओ हए ।
खकड़ेहरा (होरीकि विदाइ)
राना थारु समुदायमे होरीक अन्तिम दिन वा टिका पच्छुको आठौंं दिनमे विशेष महत्वके साथ खकड़ेहरा पर्वके रूपमे मनात हएँ । खकडेहरा पर्व खासकरके होरीक फिर मथुरयमे औरो वर्ष तक फिर्ता करन ताहिँ विदाइ करत हएँ । जा दिनसे खकडेहरा फोरनको दिन फिर कहात हएँ । खकडेहरा फोरन जान ताहिँ चाकर घर घर जाएके बुलात हए । जौनके घरमे कुइ वर्ष वा बेहे वर्षमे खकडेहराके दिनमे कुछ असुभ घटना घटो होत हए वा कुइ खण्डित काम हुइजात हए, तओ बे घरके आदमि खकडेहरा फोरनको काममे सहभागी नाहोत हएँ वा बे घरमे होरी नापुजत हएँ । खकडेहरा फोरन जानबारे मरि होरीक सातौं दिनमे सन्झिखिन मिलके घरमे कजरा, सिँदुरा, सत्नजा और सात सिँकामे सातए सात छोटे छोटे मट्टिके गुल्ला पोहएके बनात हएँ । जे कजरा और सिँदुरा घरैए बनानको चलन चलो आओ हए । कजरा कुइलाके पिसके और सिँदुरा इँटाके पिसके बनात हएँ । बनेभए जे सब पुजा समान एक घल्ला वा घल्लाको खप्टोरामे धरके कल्ह आठौँ दिनमे सबेरे भुकभुको उजियारोमे सब मिलके गावँ बाहिर खासौंखास गावँके दख्खिन दिशा घेन लैजाएके बीच डगरमे वा नदिया किनारे धरत हएँ । जेहि बने समान धरो घल्ला खकडेहराको प्रतिक मानो जात हए । विधि प्रक्रियासे पुजापाट करके गावँको मुखिया पधना, भलमन्सा वा चाकर मुगँरा(लठ्ठी)से फोरत हएँ कहिके लालझाडी गा.पा.१, देखतभुलीके मोढि श्री गुलाबी राना अपन भनाइसे बताइँ हएँ । उनहिकि कहाइ अनुसार जब पधना, भलमन्सा वा चाकर खकडेहरा फोरत हए बेहे बखत औरे सहभागी सबए एक अवाजमे “जा हिँनासे भाज, दलद्दर, दुःख, कष्ट, क्रोध, लोभमोह, हारिविमारी सब गावँसे लैजा, सुख, शान्ति, अमनचयन गावँमे छोड़जा, धनजन और खेतिपातीमे बरकत करजा आदि आदि” कहिके कामना करत हएँ और होरीके औरो वर्ष तकके ताहिँ औपचारिक विदाइ करदेत हएँ और घुमके नादेखके घरे लौटआत हएँ । खकडेहरा फोरके जब घरे लौटआत हएँ तओ एक आपसमे खुशी बाँटके पानी छिँचत हएँ और खुव रँमाएके एक वर्षक ताहिँ अन्तिम होरी खेलत हएँ । खकड़ेहरा पर्व मनानको चलन परम्परासे चलो आओ हए । यद्धपि राना थारु महिला होरीक अन्तिम विर्षजन खकडेहरक आठौं दिन(अठ्बारो) बाद आनबारि राना थारु महिलनकि औरि महत्वपुर्ण तिउहार चराइँमे हँसिखुशीसे धुमधाम होरी खेलके करत हएँ । चराइँके दिन दिनभर गाउँ बाहिर जंगल किनारे, रुखाकि छाँहि वा स्कुलकि चौरमे गावँकि एैया, दिदीबहिनिया जमा हुइके भर्रा पुजना करके खानके अनुमति देत हए और खाएपिके धुमधामसे अन्तिम होरी खेलत हएँ । सन्झि घरे लौटनपेति रुखाके पत्ता, काँटो भए रुखाके हँगा वा मट्टिक डिला लाएके गावँको मुखिया पधना वा भलमन्साके आँगनमे बर्षभरके ताहिँ गावँके देवी देवतनके रक्षाके ताहिँ फेँकके वा छोडके होरीकि अन्तिम विदाइ करत हएँ । खासमे होरी धरन, होरी डुँगन और खकडेहराको प्रतिक फोरनको काममे लोग(पुरुष) इकल्ले सहभागी होनको समाजिक परमपरा पहिलेसे चलो आओ हए । होरीक विदाइमे गानबारि गीत मोढि़ गुलाबी रानासे गाइ भइ गीतकि कुछ अंश हिँया हए ।
“कैसे आज होरी गइ रे बलामु परदेश
लल आछे आछे घुँघटा, लल आछे आछे घुँघटा,
लै ऐए रे सुनरा, लै ऐए रे सुनरा
लैए सहिए साँझ, पैँधैए आधिरात, पठैए भोरै भोर,
होरी गइ रे बलामु परदेश…………………………………………….।।”
होरीसे जुड़े कुछ मिथक
राना थारु होरी तिउहार काहे मनात हएँ कहिके कहानियाँ बातमे हिन्दु धरमसे जुडि़ तमान पौराणिक मुल्य मान्यतासे मेल खानियाँ कहानिनसँग जुडि़ हएँ । होरीमे गानबारि गीतनमे भए अदृश्य पात्र और अग्रज वुद्धिजिवी, भलमन्सा, मोढि़ लगायत भर्रनकि बतकहि अनुसार “प्राचिन काल(सत्ययुग)मे हिरण्य कश्यप नावँको एक बरदानो बहुतए शक्तिशाली असुर(दानव) रहए । बो अपन शक्ति और वलकि घमण्डसे अपनएके भगवान मानत रहए और बो अपन राज्यभर औरे कुइ भगवानको नावँ फिर लेनके बन्देज लगाए दइ रहए । पर हिरण्य कश्यपको लौँड़ा प्रल्हाद भगवान विष्णुको भगत रहए । प्रल्हादकि भगवान विष्णु प्रति आस्था देखके हिरण्य कश्यप गजबए दिक्काए गओ रहए और बिनेके बो हिरण्य कश्यप कैयौँ कठोर दण्ड दइ । पर प्रल्हाद अपन भगवान विष्णु प्रतिको आस्था नाछोडि़ । जेहे देखके असुर हिरण्य कश्यप लौँड़ा प्रल्हादके भष्मए करदेन ताहिँ अपन ललो होलिकासे गोदिमे बैठाएके पजरि आगिमे जान कहि रहए । भगवान ब्रम्हाकि भगतनिया होलिका ब्रम्हासे शितल चुनरी(डुपप्ट्टा) पाइ रहए । बोके बेहे शितल चुनरीके कारणसे आगिसे नामरनिया बहुतए घमण्ड रहए । फागुनकि पुरनमासिक दिन हिरण्य कश्यपकि आदेशमे होलिका अपनो सगो भतिजो प्रल्हादके चुनरी उढाएके गोदिमे बैठाएके आगिमे कुदपडि़, होलिका हुनै आगिमे भषम् हुइगइ पर प्रल्हाद भषम् नाभओ ।” जेहे मान्यतामे असत्य उपर सत्यकि जब फिर जित होत हए कहिके खुशीमे विष्णु भगवानके भक्त प्रल्हादकि सम्झनामे माह महिनाकि पुरनमासिमे भष्म भइ होलिका(होरी)कि प्रतिक वा झुँका बनात हएँ और फागुनकि पुरनमासिमे डुँगत हएँ कहिके देखतभुलीके समाजसेवी श्री ठगी राना अपन बतकहिमे बताइ हएँ । बेहिनकि बातकहि अनुसार प्रेम और आनन्दके प्रतिक प्रल्हादके सम्झनामे अनेक काम और बर्षभरके कैयौं दुःख, रिसराग भुलके खुसियाली मनात हएँ । आदमि आदमिन बीचको सम्वन्ध औरु गाढो होमएँ कहिके कामनाके साथ सब मिलजुलके खुब होरी खेलके खुशीको उत्सव मनात हएँ ।
होरीएके सम्वन्धमे औरो मान्यता फिर रहो हए । जामे भगवान श्रीकृष्णसँग जुडि कहानी हए । “द्वापरयुगमे भगवान विष्णुक आठौं अवतारके रूपमे भगवान श्रीकृष्ण जलम लइँ रहएँ । फागुनकि पुरनमासिक दिन मथुरामे नन्दगावँके श्रीकृष्ण अपने गोपी और गोपिनीनके लैके राधारानीसे मिलाभेँट करन बरसाने नावँको गावँमे गए रहएँ । हुनए मिलाभेँट करके श्रीकृष्ण और राधारानी सँगए आए सब गोपी गोपिनीनसँग रङ्गकि होरी फिर खेलि रहएँ । बेहे दिन भगवान श्रीकृष्ण पुतना नामकि एक राक्षसनिके फिर बध करि रहएँ ।” जेहे पौराणिक कहानि अनुसार होरीके प्रेम और सदभावकि प्रतिकके रूपमे माननको जनविश्वास जुगो हए और आपन शरीर भितरको राक्षसि प्रवृतिके आगिक लपटमे भषम् करदेन ताहिँ होरीक झुँका बनाएके डुँगत हएँ और आपसमे खुसि बाँटके होरी खेलनको परम्परा पुर्खाँतिसे चलो आओ हए ।
हिन्दु धरमके अनुयायीके रूपमे मानेगए राना थारुनको बड़ो तिउहार होरीके सामाजिक और साँस्कृतिक मुल्य मान्यतामे आदमि आदमि बीचको आपसी सदभाव, असत्य उपर सत्यकि जित, सु–स्वास्थ्य, दिर्घायु और माया प्रेमको प्रतिकके रुपमे एक दुसरे बीच शुभकामना आदानप्रदान करत हएँ और खुशी बाँटके मनात हएँ । जा तिउहारके खुशीको तिउहारके रूपमे फिर लेत हएँ । खुशी होतए सामुहिक रूपमे गावँके सबए राना थारु ददाभैया, दिदीबहिनिया गीत गाएके होरी खेलके मनानको चलन पहिलेसे चलो आओ हए । ऐसि होरी खेलनपेति राना थारु अपने अपने पारम्परिक पैँधनमे सजेगजे होत हएँ । लौँडि़या और बैयर अँगिया, घँघरिया, उँनिया, गुर्खा और घँुघट पैँधत हएँ त लौँड़ा और लोग फेँटा और झगिया पैँधके हातमे श्रीकृष्ण भगवानको प्रतिक मुरछल, रिबन वा रुमाल लेत हएँ । ऐसे होरी खेलनसे घर घरमे बर्षभर खेतिपाति खुब अच्छि होत हएँ, धनजन और पशुपालनमे फिर बरकत होत हएँ और डाह, क्रोध, लोभमोह, हारिबेमारीनको फिर चीर हरण हुइके घरमे माया प्रेम बढत हए और घरमे शान्तीको आभास होत हए कहिके सामाजिक मुल्य मान्यता रहो हए । ऐसिए होरी खेलनपेति कन्यनको पाँवसे उठो आँगनको धुधर घरके आसपास सबघेन पड़जात हए तओ घरको पुरो वातावरणए चोखो वा कोरो हुइजात हए, ऐसो जनविश्वास मानो गओ हए कहिके पुनर्वास न.पा १, पुरैनाके अग्रज श्री भिखा राना बताइँ हएँ ।
होरीमे फगोहा और हटकना
जब माह महिनाको पुरनमासिके दिन होरी धरत हएँ बेहे दिनसे लैके होरीक अन्तिम दिन खकड़ेहरा तक कोइ एक दिन जिजा अपन अपन सारिनके, मिन्त्रानो जोडे भए लोग अपन अपन सैनारनके और अविवाहित मित÷गुञ्ज अपन अपन मितैयनके समेत अविरको टिका लगाएके अपन गक्ष्य अनुसार फगोहा देनको चलन परम्परासे चलो आओ हए । फगोहा देत हएँ तओ सारि अपन अपन जिजनके, सैनार÷मित अपन अपन मित÷सैनारनके और मितैयनके हटकना करके खबानको चलन फिर चलो आओ हए । होरीएके अवसरमे सामाजिक सदभाव और आपसी सम्बन्ध औरु गाढ़ो होए कहिके पालिसपाला आस परोसमे फिर हटकना करके खबानको परम्परा फिर पहिलेसे चलो आओ हए । कहुँ कहुँ राना थारु लोग बैयर सामुहिक रूपमे घर घरमे जाएके होरीक गीत गाएके और होरी खेलके फगोहा मागनको चलन फिर चलो आओ हए ।
रानाथारु होरी आठ दिनमे सिमटगइ
परमपरागत रूपमा मानत आए महिनौं दिन खेलनबारि राना थारु होरी नयाँ पुस्तामे सिकलत आतए बदलो जा आधुनिक समाज और पेशा व्यवसायमे व्यस्तताके कारणसे आजकाल होरी टिका(फागु पूर्णिमा) और बासे पिच्छु खकडेहरा तक आठ दिन खेलनबारि मरि होरीके इकल्लो महत्व देन लगे हएँ । ऐसि बदलत आइ आधुनिक लोक सँस्कृतिकि असर राना थारु होरी खेलनकि तौरतरिका और गानबारि गीतनमे फिर पड़ो दिखात हए । पहिलेसे आजकाल खेलनबारि होरीमे कुछ आधुनिकपन देखनो कहेसे जा स्वाभविक प्रक्रिया हए पर समुदायके युवा वर्गनमे परमपरागत रूपमे खेलनबारि राना थारु होरी प्रति आकर्षण घट्तए जानेसे परापुर्वकालसे चलि आइ हमर मौलिक परमपरागत संस्कृति लोप होनको खतरा त बढो हए । तबहिमारे आम रूपमे हर्षोल्लासके साथ खेलनबारि राना थारु होरी तिउहारके संरक्षणके ताहिँ समुदायके सबए युवा वर्गनकि जिम्मेवारी बढगइ हए ।

पु.न.पा १ पुरैना, कञ्चनपुर

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