बखत की बात
“दादो दादो मोए एक बात बताता ? अपन जमानाकी”
तए अपन काम कर मोहीस जिनका का पँुछत रहत हए बिना कामक, मए जान्तउ त नैया ।
ना दादो तए ना बताबैगो त हम कैसे जानन्गे, एक दिन मए रानाथारु डटकममे देखो रहौं कि रानाथारुको दुलम्मो नाच भिंmझि हन्ना
खेलके बारेम ।
का हए जा ऐसो दुलम्मो ।
अरे सुन, तए याद अबादओ।
हाँ, अब गठी बात ।
दुलम्मो त दुलम्मुए हुइगओ हए आजकाल हन्ना झिँझि ।
दिन भर खेतमे धान काटके साँझके खानु खाएके लगभग ७–८ बजे कुइ सोन सम्हरत रहैं रहएँ तब्हीए लौंडियाको आलिस गोंदि पतालिस गोंदी………. त कभि लौंडानको धौंरासो बरधा चकरी मथेहर………… बारेन की झूँड आजात रहएँ जैसी क्वाँरकी उजियारी सुरु होत रहए ।
औ दूर दूर परोसी चौधरी गाओं घेनीसे सखियाको पोङ… पोङ…. पोङ …. अवाजको गुन्जाहट सुनाइदेत रहएँ । अब ता सब चिझमे ढक्क ढक्क नाच इकल्लो रहिगओ, बजालेत हएँ डीजे औ कटी मुर्गीयास् फतफतालेत हएँ ।, (हा हा हा हा मिर हँसी ना मानी पर दादो बत्कातए रहो)
अब जा क्वाँरकी परेबासे पूरनमासी तक झिँझि हन्ना खेले कर्त रहएँ । पूरनमासीके दिन सबेरे नदियामे झिँझि पोहानसे पहिले खेलनबाले जमा हुइके रातए पकवान पकाएके नदियामे जाए कर्त रहैं । (भर्र भर्र भर्र भर्र ………… मिर भाइव्रेसन मोडमे धरी मोबाइल बाजन लागि)
दादो अभे रुक पिच्छु बत्काँगे, पिच्छु सुनैए ……,
हलो, हाँ ……, का करन रे इत्नो रात, मेला….. कैसो मेला, अक्षा, मिर मोटर साइकिल फिर नैया आज दौवा लैगव हए यार, तुम जैयो ।…….. ना यार, मए आज धान काटके सेहरो फिर हौं, आज ना जापएहौं । तुम जाओ यार ।…….. बाइ बाई मए फोनकी बात जल्दी निभटादओ ।
दादो फिर सुरु कर……
अब दुसरे दिन….. तिर हलो बारे सँगी बात कट्बादैं अब तहूँ जा पढ……
अहाँ तओ….. कहतए मए अपन पढाइकी बुक खोलनसे पहिले फेसबुक खोलके एकघरी देखो औ, पडो पडो सोचन लागो अपन दादोकी बात,
पुरानी जबानाकी बात अन्सुनी दसतान सुन्त हानी लागत रहए । औ सँगीकी बात फिर मनमे खेलन लागी रहए, मए समाजशास्त्र को विद्यार्थी समाजिक परिवर्तन के बारेमे सोचन लागो ।
हमर समुदायमे दशमी ता ना मान्त हएँ, पर ठीक्क दशमीको घटस्थापनासे सुरु हूइके पूरनमासी तक हन्ना झिँझि खेलन कुछ रहस्य, ज्ञान जरुर हए । जा बात त हम हिन्दु सभ्यताके आसपासके बासिन्दा हैं कहूँ न कहुँ सम्बन्ध हुइसकत हए, अनुसन्धानकी बिषय हए, भुमिपुत्र, आदिवासी भएके मारे हमर मान्यता, मुल्य हिन्दुसे कुछ अलग हएँ, कुइ चिझमे मेल ना खात हैं ।
जा ता बडि बात ना रही पर मिर मनमे संगी की बात खेलन लागि औ अपन समुदायके फिर सोचन लागो । रात रात १० बजेले मेला यार, बो फिर दशमी मेला, जबकी आसपास क्षेत्र पुरो रानाथारु समुदाय हए, हुना दशमी मेला? जो दशमी ना मनात उनके बीचमे दशमी मेला? जा ता गलत बात हए, जहाँ रात रातके पढन उमरके लौंडा लौंडिया खास कर्के रानाथारु लक्षित हैं, उनहीकी जमघट हए, एक ता उइसी रानाथारु समुदायिक बिकासमे औरन्से पच्छु,
औ जा धार्मिक क्षेत्रमे धार्मिक सँस्कार सिखानके बदला दादो कैसी बात डीजेमे कटी मुर्गीयास् फतफतात हएँ, बरु राम लिला सोहात रहए दशमीके बेरा । फिर सोचो रमाइलो को सिजन हए होन्देओ, सबके रमाइलो करासी लागत हए, गलत ना सोचौं जो हए ठीक हए पर मन ना मानी गलत से गलत सहीके सहि कहन ताहीं ता ऐया दौवा पढाइ हैं, अगर गलत कुइ कर्त हए बो गलतके स्वीकार करन फिर ता दोषी ठहरैगो, मए ता दोषी ना बनंगो ।
कुछ साल पहिले होरी मिलन कार्यक्रममे एक नेता भाषण कर्त रहए रानाथारु समुदायमे रात रातके होरी लगायत नाचगान करन बन्द करन पडो, जा से हमर समुदायके बालबच्चा विगडत हएँ, उनकी पढाइ बिगडत हए, भबिष्य विगडत हए जो को असर पुरो समुदायमे पडत हए ।
बे नेता, रानाथारु हीतके संघसंस्था आज कैसे भूलीगए कि जा साल दशमीमे लागोे रातको मेला क्षेत्र फिर रानाथारु समुदायसे घिरो हए, जहाँ कलाकार अन्य समुदायके औ दर्शक रानाथारु समुदायके होए कर्त हयेँ । हम कित्नो लहचार है,ं कि हमर दिमाक पूरी हिन्दूकरणकी प्रभावमे पडिगइ दशमीमे रात रातले रमाइलो करन छूट की सँस्कृति, दिवारीमे रात रातले देउसी भैलो खेलन छूट की सँस्कृति, रानाथारुको फागुनमे विकृति ?
मौसम अनुसार फिर संस्कृति औ विकृति होत हएँ कहिके समाजशास्त्रमे कोइ ना पढाइ तभी अचम्मो लागत हए मोए ता ।, हमर कैसो मानसिकताको विकास हुइगओ दुनियाँके चकित करनिया? प्रशासन फिर बजार क्षेत्रमे रात रातके महोत्सव, मेला करन बन्द रे, ग्रामिण क्षेत्रमे छूट, आसपासके स्थानिय सरकार फिर अँधरा बने पचाए रहे हैं बेतुकी विकृति ।
राज्य सत्ताकी पहुँचमे जौन पुगे उनकी चालचलन सबके मानन पडत हए, उनकी सँस्कृति सँस्कृति होत हएँ हिना, उनके प्रशासन से फिर इजाजत मिल्त हए हिना, हम फिर सहर्ष स्विकार कर्त हयें, उनकी समर्थन कर्देत हैं । अभे दशमी सबके माननको परम्परा बनिगओ हिना जबकी तमान आदिवासी लोग नेपालमे दशमी ना मान्त रहैं ।
अब जेहीँ दशमी दिवारीके नाउँमे ठाउँ ठाउँमे रमाइलो मेला, महोत्सव लगरहे हैं, बो फिर रात रातमे तक हम बा मे समर्थन इकल्लो नाए साथ देन चल्देत हएँ । अगर ऐसिए मेला, महोत्सव फागुन चैतमे होरीके बेरा कुइ रानाथारु समुदाय या दुसरे कवार्ते, हम साथ औ समर्थन देनके बदला गारी देते । पहिले पहिले दशमीमे रामलिला होए कर्त रहैं आजकाल डीजेमे डान्स होन लागी हयें, गीत गान लागे हयें, लेओ धार्मिक भजन, गीतमे डान्स नाच होते सोहात रहए पर जा बदलाव आपन सहजए पचात हएँ, अभे तक चूँ ना बोले हएँ कोइ ।
अगर हम तीज बिशेषमे झाँकीके रुपमे होरी खेल्दएता गलत हुइजात हए । होरी बिशेष कार्यक्रममे स्टेजमे खेलत हयें ता बाको आलोचना करन लागत हएँ, होरी मिलनमे कलाकार दुसरी गीत गात, डान्स होत ता हीना आलोचना करन लागत हयें, आलोचना होन अच्छी बात हए जोसे सुधार करनको मौका बन्त हए, पर आलोचना हर गलत काममे होन पडो औ समर्थन हर सही काममे होन पडो ।
परिवर्तनके कोइ रोकनबाले फिर नैया बो रुकन बालो फिर नैया पर मौलिकता हर आदमीकी होत हए जा के संसोधन कर्के फिर बचाए सकत हएँ, सबए आदमी मौलिकताके संग सकारात्मक बद्लाव चाहत हयें, बद्लाव स्वभाविक हए पर सकारात्मक औ नाकारात्मक दुने हुइसकत हयेँ, नकारात्मक प्रभाव समुदायमे कमसे कम पडए सबए आदमीके जा मे ध्यान देन जरुरी हए ।
मए अभै समख रहो हओं कि जिन्दगी बचीरही ता कभी मए फिर ता बुढो पडङ्गो मेरे फिर नतिया नतनिया होमंगे मेरी हानी मिर नतिया कहूँ पूँछन्गे कि दादोे रानाथारु दशमी मनात हएँ की ना? जवाफ ता ना हुइजएहए पर झुटो जवाफ हुइजाइगो, काहेकी दशमीमे १०–११ बजे रातले ता दशमीमे नाचत फिर्त हैं, डीजे मे ।