‘सोरठकी साखी’

२५ बैशाख २०७८, शनिबार
‘सोरठकी साखी’

लक्ष्मि राना ( शिक्षक)

धनगढी,२४ बैशाख ।

महल कुइ दैगओ झुकैँया रे ,
हाँ रे धन मेरी सुनी सेज महल कुइ दैगओ झुकैँया रे

जिस दिन सोरठ जलमी रे पवन धरे अब लंक
काठ मजुसा खोलके दइ हए समुन्दरबिच डार

यैसी सोरठ सुथरी रे सिँक बरण करेहाँओ
सिँक बोर पानी पियए रे आँट फटए मरिजाए

बरन बरन घैली बनी रे एक बरनी पनिहार
मए तोसे बुझओँ ए सखी रे यिन मैँसे सोरठ कौन ?

बरन बरन घोडे बने रे एक बरनी असबार
मए तोस बुझओँ ए सखी रे यिनमें राजा कौन ?

बरन बरन घैली बनी रे एक बरनी पनिहार
सोनेक कलसा सिरय धरे हयेँ बेहीँ सोरठ नार

बरन बरन घोडे बने रे एक बरनी असबार
सोनेक छत्तुर सिरय धरे हयेँ बेही राजा कक्ष

आज बसेढो राजा हिँयए करओ रे देहँओ बढैया खाट
पान सुपारी सिरय गेँदुवा दुधसे फुकारओँ तेरो पाँव

पाँयेन घोडे टपे टपे रे घोडे हिसयेँ दाँत
सोबत सोरठ उजकी रे आए हयेँ राजकुमार

कि तय रानी मतको हिनो कि तेरी ओछी बुध
काहेक बिरा दओ रहए री काहेक लओ घुमाए

न मए रानी मतको हिनो नँए मेरी ओछी बुध
सात सखिनके बोलमें रे बिरा लओ घुमाए

तुम मण्डिलकी रानिया रे हम पानीके कक्ष
घर घर बाछा ना करओ रे जेही बडेनकी हए रित

तर कुमडा माटी खोदए रे उपर बलिया बंश
उठकेन कुमडा देखियो रे एक अचम्मो आए

दबु धरओँ त पगु पडओँ रे पग पग बर्सय पाप
जा कलजुग अनरित हए रे बेटिक ब्याहय बाप

फिर कहो बेटि फिर कहओ रे कहियओ बेही बोल
बेही बोलके कारन घरसे करङ्गो तेरो ब्याह

राजा बेटी जयचन्दकी पाली बल कुमाढ
राजा मरहए रोरके तए जितैगो रे खन्धार

उत्तर उत्तर कियुँ न फिरगए उत्तर तुमरो हए देश
देख तुमारी सुरत रे हृदयमें लागो हए चोट

महल कुइ दैगओ झुकैँया रे ,
धन मेरी सुनी सेज महल कुइ दैगओ झुकैँया रे ।।।

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