मनुष्यकाे जिवन पुतली जैसाे

४ बैशाख २०७७, बिहीबार
मनुष्यकाे जिवन पुतली जैसाे

कमल सिंग राना

धनगढी,४ बैशाख ।

मनुष्य कि जिवन त एक पुतली हानि हए !

जाैन हर दिन नयाँ नयाँ फुलके चुमत हए !!

प्रतियोगिता ता सिर्फ एक बहाना हए !

बजह ता एक दुसरे से मिलाना हए !!

कबिता ता सिर्फ एक मनो भाबना हए !

जासे दुख सुख बाटन सिख जाना हए !!

चित्र ता सिर्फ एक आइना हए !

उद्देश्य ता सबके एक बनाना हए !!

अभएकि परिस्थिति पक्कए फिर सहज ना हए, विश्व आक्रान्त हए, कइ हमर ददा भैया दिदि बहिनिया देश विदेशमे कोइ लकडाउनमे , कोइ होम क्वारेन्टाइनमे हए , अइसो परिस्थितिमे सबकोइ अपन घरे आन चाहत हए, पर अवस्था सजिलो ना हए, जा अवस्था सम्यम रहनको हए, एक दुसरेके अपन अपन जघासे सक्दो मद्त करनको हए, ऐसो विषम परिस्थितिके बाबजुद हमर ददा भैया दिदि बहिनिया जहाँ फिर हएँ एकता दिखान डटे हएँ, अपन मनको शन्देस देन चाँहत हएँ, जहे हमर उद्देश्य हए, रङ ना हए डाट पेन से चित्र बनाएके पठान डटे हए, सिसाकलमसे कापीके पन्नामे अपन दिल बहलान डटे हएँ, और हमसे अपनो भावना साटासाट करन डटे हए, देश ,विदेश ,मलेसिया, साउथ कोरिया, दिल्लि, भारतके तमान जगहा , लखिमपुर, नेपालके तमान जगहासे ऐसो विषम और सम्बेदनशिल समयके एक घरी भुलके अपन सम्झना रुपी चित्र और कबितामे कला और कलम चलान चेष्टा करन डटे हएँ, बे हाथके हम सोलुट और सम्मान करन चाँहत हए , बिनसे हम जुडन चाहत हए, सुचना आदानप्रदान करन चाहत हए । इतकए कहतए अन्तमे ददा भैया दिदि बहिनिया सन्सारकि जौन कोनोमे होबओ हमसे अपन छोटो कबिता और चित्रकि माध्यमसे जुड्देन और दुख सुख बाटन अनुरोध करत हए!!

समाप्त

कविता प्रतियाेगिता प्रचार प्रसार समिति ( संयाेजक)

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