चराँइ तिउहारकाे महत्व

१३ चैत्र २०७६, बिहीबार
चराँइ तिउहारकाे महत्व

डिल्लु राना (उत्तरा खण्ड भारत )

धनगढी , १३ चैत

चराई तिउहार आपन को प्रकृति वा पारम्परिक उत्सव हए नव संवत विकर्मी संबत २०७७ सालके रुपमे मनाहाएँ ! और प्रति वर्ष चैत मास से आरम्भ होत हए “ चिराई चैत मास के आगमन पर प्रकृति उत्सव के रूप मे मनात हए, हमर थारू समाज मे चिराई को विशेष महत्त्व हए जनजाति समाज मे चिराई आदि काल से मनात चले आये हएँ । चैत्र मे चिराई मनात हएँ,
आषाढ़ मे आषाढ़ी मनात हएँ सावन मे सबइया मनात हएँ , फागुन मे होरी को उत्सव मनात हएँ जे सब हमारे पारम्परिक त्यौहार हएँ वर्ष भर हम प्रकृति की पूजा अर्चना जे तिउहारन के माध्यम से मनात हए चिराई को महत्व चैत मास मे गेहूं की फसल के आगमन पर और ज्यादा बढ़ जात हए’
और प्रकृति माता से रानाथारू समुदाय के लोग कामना करत हए की हमारी फसल अच्छी होबय चिराई चेत मास मे मनात हए , अपने आप मे एक अनोखो तिउहार हए ज मास मे होरी की विदाई करत हए ।
आपन की पारम्परिक मान्यता के आधारमे, घर मे नई बहु ( नइदुलहन) को आगमन होत हए, बहे समय बहु को आचरण व्यवहार, सहनशीलता, कार्य कुशलता को परीक्षण करो जात हए, परीक्षण के रूप मे बहु के आगारु काँटो डार देत हएँ , कहु, मट्टी से लिटकाए देत हएँ,
जब चिराई को समय नजदीक आत हए तब गांव को भलमन्सा गांव मे कुटवार ( चाकर) के माध्यम से बुलबात हए कि, “चिराई की मच्छी मारन चलियो, फिर दूसरे दिन चिराई की मच्छी गांव के लोग मारके लात हएँ और जनजाति समूह के लोग प्रकृति पूजामे मच्छी, मिसौला,
और दही को अर्द्ध ( पुजा समना ), “भलमन्सा के माध्यम से प्रकृति माताके पूजत हएँ और सम्पूर्ण राना समाज चिराई के दिन (चेचर और मिसौला मच्छी दही आदि खानु हए । जा राना समाज को प्रकृति वा पारम्परिक उत्सव हए चैत मास को एक अनूठो तिउहार हए । और ज प्रकृति माता के समर्प्ति

समाप्त

उधमसिह नगर खटिमा उत्तर खण्ड भारत

Wedding Story advertisement Of Jems Movies & Photo Studio