धनगढी,२७ फागुन २०७६
रानाथारु समुदाय होरी तिउहार के बडो तिउहारके रुपमे मानत हएँ । हिन्दु संस्कृतिमे होरी तिउहार परापुर्वकालसे चलतआएरहो रंगविरंगी पर्वहए । रानाथारु समुदायमे होरी तिउहार एक महिना आठ दिनतक मानतहएँ । असत्यउपर सत्यको विजयके खुशिमे होरी तिउहार मनातहएँ बताइ बेलाके शिक्षक महाविर राना ।
कैलाली औ कञ्चनपुर जिल्लामे बैठनबाले रानाथारु होरी पर्व दुइ अलग अलग कथाबस्तुके अधारमे जुडि कहानि अनुसार हिरण्याकश्यापुको लौडा पहिलाद विष्णुको भक्त रहए । हिरण्याकश्यापु स्वयम अपनयके भगवान मानतरहए ।
तकहिकमारे विष्णुक भक्त पहिलादके मारन ताँही बहुत कोशिष करीर , पर विष्णुक भक्त पहिलादके बारको बाँको तक नकरपाइ । राजा हिरण्याकश्यापु एक दिन अपन बहिनीयाँ होलीका से कहि पहिलादके मारनताँहि ।
होलीका भगवानसे आगीसे नमरनियाँ बर्दान पाइरहए बहेके दुरुपयोग करके पहिलादके मारन ताँही भतिजो पहिलादके गोदिमे लैके जादुमय चिर ओढके बैठी औ राजाके आसेपासे सबमिलके आगी लगादइ कहत हए पर भगवानको कृपासे जौन चिर ओढके बैठी रहए हालीका बहे चिर उडके पहिलादकेमे उढजात हए औ होलीका वीसी रहिगइ औ आगिके लपटसे डुङगइ ।
दुसरी कहाइ हए श्रीकृष्ण भगवान अपन ग्वालीनके संग रासलिला खेली रहएँ । मथुरासे लैके गोकिल तककि गोपनी संग होरी खेली बहे समयमे श्रीकृष्णके मारन ताँही राजा कंश बहुत दानबरुपी रक्षस पठाइ बे सबयनके एक एक करके श्रीकृष्ण भगवान मारगिराइ । खासकरके होरी को तिउहार असत्य उपर सत्यको विजयको खुशिमे खेलत आएरहे हएँ । बाताइ मनेहराके भंगी भगत राना
।
चिरहरन होरी पर्व
रानाथारु समुदायमे होरी तिउहार अलग ढंगसे मानत आएरहे हएँ । माघ पुर्णमासीके दिन होरी धरत हएँ ( जा से जिन्दा होरी कहत हए) । चाकर गाँवसे भेट उठाएके लात रहए बहे उठो भेट , होममसला, लौङ आगरबत्ती औ प्रसाके रुपमे पुरी पकाएके लैजात रहए बहेके गाँवको पधना या भलमन्सा पुजा करके होरी धरत रहए ।
माथुरासे होरी आइ मथुरासे गित गात हए औ अपन अपन घर चले जात रहए । बहे दिनसे लौडा प्रत्यक दिन कन्डा चुराए चुराएके धरत जाते औ होरी डुगनको दिन आइतो तओ लाहिको टिटारो चुराएके जमा करते औ बनमैसे सात बेहदा काटके कन्डाके आसपास गडत हएँ बिचमे टिटरो धरत हए औ खुब उच्चो बनाएके बामे राक्षेसको पुतला बनाएके धरत रहएँ औ डुगतपेती सब जनी पता पामयँ कहिके बेलको फरा विचबिचमे धरत रहए ताँ कि डुगनपेती पडकय ।
फागुन पुर्णमासीमे जाइके डुगत हए ( जा से मरि होरी कहत हए , मरि होरीमे दिनमे खेलत हएँ ) फिरके पहिली हानी गाँवसे उठो भेटके संकलन करके पधना या भलमन्सा होरीमे आगिलगनसे पहिले पुजपाठ करके एक निनासमे सातफेरा होरीके घुमके आगि लगात रहए तव फिर गाँवके आदमी होरीमे आगि लगात हएँ फिर बहे उकाके एकय निनासमे दौडके कुइयाँमे डारदेत हएँ औ प्रसाद बाडके होरी खेलत हएँ औ गित गातहए ( आज होरी गइरे बलामु परदेशय ) ।
दुसरे दिन ३ , ४ बजेसे घरघरसे सब जनी होरीको टिका लगान जातहए खाली हात टिका नलगात हए जहेमारे घरसे चमर या गेहुक बाली तोडके पहिले होरीमे डारके तओ फिर टिका लगात हए । अपन पहिरनमे सजि लौडिया , लौडा समरके होरी लैकेआत हए अग्गु लौडा औ पच्छु लौडिया सब मिलके गाँवको मुखिया पधना या भलमन्साके घरमे जाइके होरी खेलत हएँ । औ ८ दिन तक दिनमे होरी खेलत हए ऐसीकरके एक महिना आठ दिन जा होरीको तिउहार मनात हए । बताइ धनगढी गाँवके भलमन्सा भज्जी राना
खखडेहरा पर्व
पहिलो दिन पधनायके घरमे होरी खेलन दुसरो दिन भलमन्साके घरमे , तेस्रो दिन चाकरके घरमे तओ फिर गाँव बालेनके घरमे खेलन चलन रहए । सबेरेसे लौडिया होरी खेलनके मनुबान घर-घरमे जात हए औ होरी खेलाइलेबौ कहत हए । होरीको अन्तिम दिन ८ औ दिनमे खखडेहरा फोडत हए ।
खखडेहराके दिन सबेरेसे घरघरसे एकएक लोग , बैयर या बच्चा जौन जायसे फिर अपन घरसे फुटोघल्ला लैके जातहएँ औ अपन गाँओको खेरो नाघके सब जनी अपन घरसे लैगो पुजासमाके फाेडके सब जनि हुनसे भाजत हए ओ पच्छुघुमक नादेखत हए । कहत हए पच्छुसे रक्षस रपटात हए जौन पच्छु घुमक देखत हए बहेके रक्षस खाइजात हए कहाइहए ।
ऐसी करके उमंग औ उल्लासमय बातावरणमे होरी तिउहार मनात हएँ । बताइ देवहरियाके भलमन्सा जगन्नाथ राना