रानाथारू कबिलामे अट्टमी त्योहारः एक मनौता

१९ भाद्र २०८०, मंगलवार
रानाथारू कबिलामे अट्टमी त्योहारः एक मनौता

लेखकः लक्ष्मि राना । गदरिया गाँव ।
हर कबिलाको पहिचान बोके संस्कार संस्कृतिसे जुडो होत हए । बेहिँ पहिचानके संग संगए अलग कबिलाको अलग नाउँ तलक देत हएँ । संस्कार, संस्कृति, रिवाज, धर्म, विश्वास एक कबिलाको इकल्लो सोभा ना बल्कि पुरए देशए कि सम्पतीमे गिनो जात हए । और बेहिँ तमान संस्कार संस्कृतिके भितर त्योहार भि पडत हए । हर त्योहारको अपनो अपनो मोल हए और हर त्योहारम् अपनो अपनो बिस्बास और प्रेम लुको होत हए । बेहिँ बिस्बास और प्रेमके बाँधत हर कविलाके आदमी अपन अपन रिवाजके साथ हर त्योहार मनात हएँ ।
साँस्कृति सुन्दरताके हिसाबसे रानाथारू कबिला भि प्रसिद्ध मानो जात हए । अगर हम त्योहार कि बात करएँ त रानाथारूनमे और कबिलनसे त्योहार माननको रिबाज अलग हए । रानाथारू कबिलामे होरी, खक्डेहरा, चराइँ, तिज, बिनाइतबारी, दिबारी जैसे त्योहारके इलाबा अट्टमी त्योहार भि पडत हए । जा त्योहार बिशेषकर दुइ दिनतक मनात हएँ । सुरुक दिन कन्हैयक जलम और दुसरो दिन कन्हैयक सठीके रूपमे धुमधामके साथ मनाओ जात हए ।
अट्टमी आनसे एक दुइ दिन अग्गुवएसे छोटे बड़े सबए आदमिनको मुखडामे खुसि झलकत हए । गाउँमे अट्टमी कि तयारी अग्गुवएसे करन लागत हएँ । घर घरमे खजुरखानीके हँसिमजाक गुँजत हए । नचकर्हैया, मोढि मुढियाइन सबए अपने अपने साझबाझ सम्हारत हएँ ।
बिस्बासः
शास्त्रमे कहो गओ हए कि भादौँको कृष्णपक्ष अष्टमी तिथिके आधीरात मथुराको जेलम आजके दिन देवकीके आठौँ सन्तानके रुपमे भगवान श्रीकृष्ण जलम लैँ रहएँ । उनहिके जन्मोत्सवके रूपमे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनात हएँ । दुष्ट कंशके कारन देवकीके सात सन्तान मारे गए पर आठौँ सन्तानमे स्वयम् हरि कन्हैयाके रुपमे जलम लैँ । दुनियामे पापक बिनास करिँ । ऐसि कछुके कारन जौन आदमी सन्तानक सुख ना पाइँ बिनकि घरमे स्वयम् हरि कन्हैयाके रुपमे जलम होए और सारा दुख हर लैजाए कहिके अट्टमी बर्त रहात हएँ । जा बर्त एक मेलको आग्रह हए हरिसे कि बे हमर घरमे कान्हाके रुपमें आमएँ ।
गदरिया कि राममती राना बतात हएँ कि अट्टमी बर्त मनौता होत हए । पहिले पहिले जौनक बाल बच्चा ना होत रहएँ, जौनक बच्चा ना जियत रहएँ, हारिबिमारीसे उठ ना पात रहएँ बेहिँ दुखिया बर्त रहो करत रहएँ ताकि हमके सुख बन्जाए और बिनहिके देखके और दुखिया फिर बर्त रहो करत रहएँ । पुर्खा लोग कहत रहएँ कि अट्टमी बर्त अच्छो ना रहत हए जौन दुखिया हए सिर्फ बहे अट्टमी बर्त रहे करत हएँ । आजकल भगमानक बर्त कोइ भि कर सकतको मान्यता बढनको कारनसे अच्छे भले सब कुइ देखासिखि कुइ अपने सौखस् बर्त रहात हएँ ।
अट्टमीके दिनः
जौनक घरमे डोला डरत हए बे डोला डारत हएँ । जौनक घरमे ना डरत हए बे कन्हैयक फोटु लगात हएँ और जहाँ भगमानक आसन हए हुना फूल मालासे सजात हएँ । बहे दिन घरके भीतनमे रंगसे रंगविरंगी डोला डोलत, नागमे बैठो, दही खात, मुरली बजात ऐसि और और कन्हैयक मुरत बनात हएँ अर्थात् रंगसे कन्हैयक हस्तचित्र बनात हएँ ।
अट्टमीके दिन सबेरे अपनो दिउता, रुसैया और घरमे चौका लगात हएँ । दुपहार घैँन गेहुँके चुनम् चिनी बालो मीठो पानीसे चुन माडत हएँ । फिर बिलना चौकिस् बेलके छोटे छोटे तिनकोनो बनन हिसाबस् छुरिया चम्मचसे छोटे छोटे खन्ड बनाएके तेलम् पकात हएँ, जहेसे खजुरिया कहत हएँ । पकाओ भओ पहिलो घना भगमानक ताहिँ अलग निकारक धर लेत हएँ । प्रसादके रुपमें घरमे पकन बालो खजुरियाके इलाबा घरैमे मिलन बालो फल जैसे कि बिहिँ, छिँयाँ, खिरा भि रहत हए ।
अट्टमी बर्तः
बर्तके दिन हँदाएखोरके भगमानक धुप बत्ती जलाएके बर्त बैठत हएँ । जौनक घरके सुरुम अट्टमी बर्त रहत हएँ या दुखिया आदमी बर्त बैठनके सोची हए कहेसे बे सबेरेसे बर्त बैठके जौनक घर बर्त बैठत हएँ बहे घर सन्झिक आखत डारन जात हएँ । सुरुक साल दुसरे घर हुमम बैठत हएँ और भगवानसे मागत हएँ कि हमके फल बन जाए । अगले साल अपने घर हुम जलात हएँ । संगए संग घरके और फिर बर्त बैठ सकत हएँ पर जौन सुरुस बर्त बैठो बहे साँझक हुम जलात हए । हुमम आमके डाल, हुम मसला और घिउ, धुप जेहिँ सामान लागत हएँ ।
अट्टमीमें डोलाः
भादौँमे कन्हैयक डोला पडनको कारनसे जनैँया आदमी भादौँ लगे जबसम अट्टमी ना होत हए तबसम खटिया पल्खिया ना बिनत हएँ कहिके पुर्खा लोग कहत हएँ । अट्टमीक डोलक ताहिँ आमकि लकडीसे पल्खिया बनात हएँ । बो पल्खिया सिर्फ बहे रोज बनात हएँ और बहे रोज सपाडत हएँ । आगुपिछु ना बनात हएँ । तौसे बहे पल्खियम कन्हैयक डोला डारत हएँ पर आजकल तमानसे बजारक डोला डारत हएँ और बहेमे कन्हैयक डोला डुलात हएँ ।
अट्टमीमे कोइ डोला डारत हए त कोइ ना डारत हए । जौन कुइ डोला डारत हए बो गोँडि बालो खिराके भगमान कन्हैयाके रुपमे स्थापित करत हए और कोइ कोइ भगवान कन्हैयाके स्वरूप भओ मुर्ती स्थापित करत हएँ । जौन कुइ डोला ना डारत हए बे हुम जलाए लेत हएँ ।
बर्त खोलनः
अट्टमीके दिन साँझक भगमानक ताहिँ जो जो प्रसाद बनाइँ हएँ बे सब जहाँ भगमानक आसन हए हुनएँ लैजाएके धरत हएँ । और आठ बजे घैन हुम जलात हएँ । आधी रात जब कन्हैयक जलम होत हए तओ बर्त खोलत हएँ । बर्त खोलत पेति फिरसे हुम जलात हएँ । खजुरिया और फल विशेषकर बिहिँ, खिरा और छिँयाँ चढात हएँ । आजकल बजारके फल भि चढाव करत हएँ ।
बर्त खोलत पेति बर्त बैठो भओ आदमी अगियारि करके टिका लगात हए । तओ फिर अपना प्रसादके रुपमे फल खजुरिया और दुधसे बनि खाजि जैसे सिम्ही, हलुवा खात हएँ । बो दिन नुन ना खात हएँ और एकबरि सबेरे खात हएँ ।
अट्टमीके रात रामायण बाँचन बाले रामायण बाँचत हएँ, कृतन करन बाले कृतन, नाच करन बाले नाच तमासा घर घर जाएके करत हएँ और गीत गान बालि बैयर घर घर जाएके ढोलम गीत गाएके चैनियारो करत हएँ । गीतमे फिर कन्हैयक सिमरौनी, गर्भौती जल्मौती ,गुपली जैसि गीत गात हएँ ।
दूसरे रोजः
भोर भए सबेरे हुम जलान बालो आदमी जलाओ भओ हुमको राख नदियम पुहानक जात हएँ । अगर अबसे बर्त ना करैया हए कहेसे बो बहे राख संग अबसे बर्त ना बैठहओँ कहिके नदियामे अपनो बर्त पुहाए देत हएँ । तौसे बा दिनसे बो अट्टमी बर्त ना बैठैगो । अगर दौवा अपनो बर्त छुडैया हए और लौँडा बर्त रहैया हएँ कहेसे राख पुहात पेति दौवा अपनो बर्त पुहाइगो और लौँडा पकडैगो अर्थात् राख पुहात पेति दौवा धारके उपर और लौँडा धारके तरे ठाडैगो । जैसि दौवा अपनो बर्त पुहाबैगो ( राख संग भगमानक जितनो सामान हएँ जैसे डोला, फोटु सबकुछ पुहान), तैसि तरए लौँडा पकडैगो । तबसे अट्टमी बर्त लौँडा रहैगो । राख पुहाइके नदियमसे हँदाएके घरे आत हएँ ।
कन्हैयाक सठी
अट्टमीके भोर भए साँझक कन्हैयक सठी करत हएँ । पहिले पहिले कन्हैयाके सठीमे कुइ कुइ गाउँभर चिल्बात फिर रहएँ कि कन्हैयक सठी खानक ऐयओ कहिके । सठीमे विशेष करके गुलगुला पकात हएँ और जौन कोइ अपनी डेहरि दाबो उन सबके गुलगुला खबाएके पठात हएँ । रानाथारूमे सठी मतलब कि बच्चा जलमो और बच्चक गोँडि छुटनके बाद सठी करनो एक रिबाज हए । जबसम सठी ना हुइहए तबसम बो बच्चा अपनो घरको ना कहिबात हए और गुर्छठ(छुत) मानत हएँ । जौनकोइ डोला डारो उनके सठी कर्नए पडत हए और जौन कोइ डोला ना डारो बो उनको इच्छा, कुइ सठी करत हएँ और कुइ नाहिँउ करत हएँ । सठीमे साँझक हुम पजारके गुलगुला चढात हएँ । तौके गुलगुला बाँटट् हएँ ।
अट्टमीकि गीतः
अट्टमीमें गान बालि गीतके कुछ अंशः सिमरौनी गीत
सिमरे सिमरे गुन गैयओ मेरे राम।
कौनएँ गीत गाबओ रे सुन लैयओ उतार।।
पहिले सिमारौ किसन देव पाछु चरन अदान।
उनहु कि दर्श पर्स मेरी काया सुफल हुई जाए।।
जिन पाछु सिमरौ मै अपनो पिता।
जिन्हु जलमाई मोके जाघिया लगाए ।।
गुपली गीतः
शंकर पिता गरवसी माता सकल लोक परिवार।
बुद्ध एक मै कलमे देखो बुद्ध बडो संसार।।
सबए देब जुरमतओँ करत हएँ चलहुन हरि के द्वार।
चलहुन हर के द्वार देवता बिनती करएँ बनाएँ।।
कहाँ कहएँ हम कलजुग की बातएँ हमसे कहो ना जाए।
मथुरा में कनसासुर बढो मेँटए हरको नाउँ।।
दुध दही को भोखन देहओँ देहओँ जमुना जी के तीर।
सोह्र सय ग्वालिन देहओँ करिए भोग बिलास।
जाबओ रे देब जाबओ रे देब अपने दुवार।
कनसाके मन्दिर मोके दियओ रे बताए।।
गर्भौती गीतः
कौन लोक से जा आओ बँभना कौन लोक के जाए।
बाँभनको भेष से नारायण बनी जाए।।
स्वरग लोक से आओ बँभना मृत लोक के जाए।
बाँभनको भेष से नारायण बनी जाए।।
कोटा की पनिहारिन बहिनी लागी री हमार।
कनसा की मन्दिर मोके देबओ री बताए।।
उँच निची बनी पमरिया चन्दन लगे फिबार।
चम्पा सोमल हँथिया रे झुमएँ रे दुवार ।।
कन्हैयाक जल्मौती गीतः
पनिया भरन के देबकी निकरी जमुना जी के तीर।
ओहोनासे आबए माता जसोधा जमुना जी के तीर।।
छोटे छोटे पेड़ कदम घन छहिँयाँ नित जमुना जी के तीर।
बहत तरे बहिना रुधना करत हए जमुना जी के तीर।।
सात पुत्तर मोके दै हए विधाता कंस करी सङ्ग्राम।
अठहओँ जा गरब लए हओँ जाके कहाँ छिपाओँ ।।
कहए जसोधा सुनओ देवकी सुनिए कान लगाए ।
लड्की दै के लड्का पए हओँ तेरो पुगए हओँ आस ।।
और चीज को मएँ अदलो बदलो जाको ना व्युहार।
दया पुत्तर जा कोइ ना बदलो ना जियारा पतियार।।
बाहिर राखी सोह्र सय पहरुवा नौँ सय चौकिदार।
सिरहिन राखी दिउतिन बुढिया नगर रखी कुतबार।।
भर भादौ की जा बिस अँधियारो कन्हैया लै औतार।
ताला टुटो भुवा भओ रे मन्डिल भै उजियार ।।
भिनसरिया गीतः
भेन भई भिनसरिया पछार भई रात,
उठओन बारो कान्हा बछरा चरान।।
बछरा चरान री मैया हम नाहीं जाए,
सनेकी मुरलिया मैया देवओ बनबाए।
सोने की मुरली रे राजन घर होए,
बाँस की बसुरिया बेटा देवओ बनबाए।
स्रोतः (राना, बम्मन,२०७८ पृः १०४–११०)
अन्तमें
ऐसि हँसी खुसी बाँटत भक्ति भावसे अट्टमी त्योहार निपट जात हए । हमर संस्कार संस्कृतिमे पहिलेसे जाधा देखावटीपन बढतए जान डटो हए । पहिले हमर लोक गीत, लोक गाथा का कहत हएँ, हमर पुर्खा लोग कैसे पुजापाठ बर्त तरत्योहार कैसेक कौन कारनसे मनात रहएँ बो बातमे गौर और नमन करत आजके पुस्ता हमर संस्कृतिमे रहो भओ खराव चिज हटात अच्छि चिजके अँगरे लगान जरुरि दिखात हए ।

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