माघ २८ जहे माघ २३ गते नेपालकि अलग्गए आदिबासीकि सुचिमे सिमटो कैलाली कंचनपुरके आदिबासी रानाथारु समुदायमे होरि सुरु हुइगै हए । रानाथारु परम्परा रिवाजके अनुसार माह कि पूरनमासी से जिन्दा होरि सुरु हुइजात हए। माह कि पूरनमासी से फागुनकी पूरनमासी (होरि डुँगन) तक एक महिनाको लम्मो समय तक जिन्दा होरि खेलन को परम्परा हए जा होरि रात मे इकल्लो खेलो जात हए पर आज्कल पढाई, बिकृति औ काम को ब्यस्तता के कारण रातमे होरि नाखेलेस फिर औपचारिकता औ परम्परा बचान ताहिं होरि लगभग सबए रानाथारु गाउँमे धरिगै हए । चाकर, भलमन्सा, गौंटेहर लगायत गाउँके तमान युवा जमान इकट्ठा हुइके दिनबुडे होरि धरो कर्त हैं, गौंटेहरा पुजापाठ कर्के होरि को सुभारम्भ करत हए औ गाउँबाले आद्मी टुटरो, कण्डा लगायत समान जमा कर्त हैं अब से रोज दिन जब मन भओ होरि बढाए सकत हैं औ अब जा होरि फागुनकि पूरनमासी के सन्झाके जोनि निकरे डुँगो जाइगो, होरि डुँगन फिर गौंटेहर, भलमन्सा, चाकर औं लौडा जवानको सहभागी रहैगो, ऐसिए डुँगो होरिको भोर भए गाउँबाले हुर्खिल्ला भुवाको टीका लगाएके मरि होरि खेलन सुरु कर्त हैं । बो दिन लौंडा लोग मतबरिया लैजात हैं त लौंडिया छैला लैजात हैं बो दिन दिनमे गाउँको जानोमानो भलमन्सा घर पहिली होरि खेल्त हैं । ऐसिए अठबारो तक मरि होरि चल्त हए अठबारो मे खखडेहरा फोरन को चलन हए, औ जहे समए (एक हप्ता तक) फगोहा देन औ हटकना करन चलन हए । खखडेहरा के दिनसे होरि समापन मानोजात हए पर औपचारिक रुपमे चैतकि चराइँके दिन होरि पठात हैं बहे दिन “होरि चली परदेश से रे… “, “जिहौं त खिलहौँ फाग होरि मरो दुलम्मो हुइगओ” बोल कि गीत गात हैं । होरि रानाथारु समुदायमे सबसे लम्बो त्युहार मानोजात हए ।