बुढे की बाह्रामासी – गित

२६ पुष २०७६, शनिबार
बुढे की बाह्रामासी – गित
नन्द कुमार राना
बेलौरी ८ , कलकत्ता

धनगढी , २६ पुस

अषाड

डगमग हालै नारि बलम मेरी लागै बाबा सौ ।
खो खो , खोँ खौँ करे फिरै मेरे लोहु को प्यासो ।।
बहुत धन बाबुल ने लीयौ ।
नौमी लगत अषाढ व्याह मेरौ बुढा से कीयौ । जुलम सब माहिल ने कीये ।
दोनोँ लंग से विचौलिया ने नौ सौ लै लीये ।।
सखी मे रोय रही ठाडी ।
लल्लु भजना हँसे बलम की हालि रही नाडी ।।
खाय कै परि गयौ कुठिला सौ ।
डग मग हालै ……


सावन

सावन महीना लगौ डोकरा पौरी में सोबै ।
धन्धौ नाहें करै पजारौ प्रानन को खोबै ।।
पपइया बोल रहौ बानी ।
कहाँ करुँ सिंगार बलम ने कदर नहीं जानी ।। राम मै विपता में धेरी ।
भरि लएै सात हजार बाप ने कुआ में गेरी ।।
डुवि गई अधबर ने नइया ।
सूनौ लगै लिबाइ बे नाय आयौ भेरी भइया ।।
विपति मेरी को अविनासौ ।
डगमग हालै……

भादौं

भादौं महीना लगौ डोकरा ऐंठ करै भारी ।
सास ससुर मरि गए रहि गई नन्दुल हत्यारी ।।
डोकरा बांखरि में डोलै ।
सबरे दांत लगे पत्थर के ठीक नहीं बोले ।।
ब्लम ने सात व्याह कीये ।
सातौ लई टपील कुमर नहीं काऊ कै जीये ।।
अकेलौ रह गयौ हत्यारो ।
देख सखी बूढे बालम को खाय नहीं कारौ ।।
बैठि गयी देकै परदा सौ ।
डग मग हालै……

क्वार

क्वार महीना लगों डोकरा जूडी में घेरौ ।
प्यारी देख सहेली कैसे जनम कटै मेरौं ।।
उमरि मेरी देख सखी बारी ।।
कैसे होय सन्तान सखी मोय समझाओ प्यारी ।।
बहुत दिल मेरौ घबडाबै ।
जा बालम से राँड भली जाय काल नहीं खाबै ।।
धीर मोय कौन बंधावैगौ ।
कहैं आनन्दी सिद्ध बुढापे में कौन निभावैगौ ।।
यही मन मेरे अभिलाषी ।
डग मग हालै…….

कातीक

कार्तिक महीना लगौ डोकरा छाँटे चतुराई ।
लोग लुगाई हंसी करें मेरी कम्बखती आई ।।
नगर ने बूढौ समझायौ ।
जीवन है धिक्कार डोकरा नागिन सी लायौ ।।
बुढें व्याह रचामें जम में अधरम हैं छायौं ।।
पलटि गई रीति जमाने की ।
बेटी बेचा करें कमाई पाप कमाने की ।
जगत में कलयुग परगासी ।
डग मग हालै……..

अगहन

आयौ अगहन मास डोकरा कैसौ मस्तानों ।
हरदम गारी देय सुनाबै हरमुनियाँ गानौ ।।
नाय जाय शरम लगै बहना ।।
सखी मास के विनी हमारी कदर कछु हैना ।।
परौसिन रोज लडै दारी ।
लंहगा डारुँ फारि सोति जो अवके देइ गारी ।।
मबायौ दुती ने हल्ला ।
जीव चलाबे फेरि सोति के मारुँगी मल्ला ।।
निपुती रोज करै रासौ ।
डग मग हालै …….

पूस

पूस महीना लगौ डोकरा जाडे में काँपें ।
ओढि गुदरा पोरी में से चारौ लंग झाँकै ।।
डोकरा मस्ती को मारौ ।
कछु न जापै होय लगाबै काजर मतबारौ ।।
कही मेरी एक नहीं माने ।
साँची कहूँ बुरी जाय लागै अडिवे की ठानें ।।
पजारो सब घर में थुके ।
जाके लक्षण देखि (देखि के खुन मेरौ सुखै ।। कहै तू पहर बहू खासो ।
डग मग हालै………..

माह

माह महिना लगौ पुजारी ऊपर कुं ऊलौ ।
जाडौ जाय नाय लगै दिनकरौ कुत्ता सौ फूलो ।।
बहर और रसिया नित गावै ।
स्वांग करै नित नये डोकरा हमकूं तरसावे ।
पिता तैने गजब कियौ भारी ।
जइयौ सत्यानाश बाप तैनें पत्थर ते मारी ।।
हमारी भबक रही छाती ।
बूढे पति को देखि(देखि मछली सी घबडाती ।।
डोकरा कूदै करहासौ ।
डग मग हालै……..

फागुन

फागुन महीना लगौ डोकरा आँगन में नांचे ।
पुस्तक लैके हाथ पजारौ रसियन को बाँचे ।।
डोकरा बुगदी पै आयौ ।
नाचि(नाचि के मोय रि झाबै ऐसौ मस्तायौ ।।
न देखे बूढी और बारी ।
जा बूढे को देखि हमारी सब विधि ते ख्वारी ।।
करि रहे सब ठट्टे बाजी ।
देखि सहेली पति बूढे से नाऊ मैं राजी ।।
न कोई दुनियां मे जासो ।
डग मग हालै ……

चैत

चैत महीना लगौ डोकरा उदमादो डोलै ।
मैं तो पूंछी बात पजारो मुख से ना बोले ।।
करै को मेरी सुनबाई ।
मनमानी सब करै न घरको देई एक पाई ।।
मिलौ गोय लोभी पति बहना ।।
ना धेला भरि चौज अंग पर गहनों तक हैना ।।
मरौ जाय ऐंठ करै भारी ।
सास निपूती मेरे ताई जनि गई हत्यारी ।।
परि गयौ पीरौ जरदासौ ।
डग मग हालै………..

बैसाख

लगौ मास बैसाख डोकरा गर्मी से सुकै ।
मरे न माचो लेई पजारौ जगह जगह थूकै ।

हमारे प्रानन कौ लेबा ।
रहौ अकेली ठ्रूट न कोई पानी कौ देवा ।।
खाट विन धरती पर सौऊँ । पलभर परे न चैन सहेली करमन को रोउंm ।।
न भोजन खाय सकै बासौ ।
डग मग हालै….

जेठ

जेठ महीना लगौ डोकरा लुअन कौ मारौ ।
मक्कर दुने करै सखी मेरे भइया कौ सारौ ।।

डोकरा ज्वान बने बहना ।
भये छीपटी गाल पिया के कूआ से नैना ।।
मौर दऊँ चुडी बइयां की ।
माटी लेइ समैंट राम जा बूढे सइयाँ की ।।
हाय मोय आमें पछिताए । गयौ नसीबा फुट हमारे भये न मन भाये ।।
परौ रहै घर में मुरदासौ ।
डग मग हालै…….

लाैंद

लाैंद महीना लगौ डोकरा दगरे में सोबै ।

रोटी तक ना खाय पजारौ हुक्का को रोवै ।।
उठै जाय रोज कुकर खाँसी ।
नित उठिं करै कलेश एक दुख एक लगत हाँसी ।
दुखारी है गयौ हत्यारौ ।
गुल्ला भगत सुनौ भक्ती से सुरपुर जाउंmगी ।
आज मैं सत्य बचन भासी ।
डग मग हालै …

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