लौडिया हौँ मयँ सुन्दरी

८ चैत्र २०७६, शनिबार
लौडिया हौँ मयँ सुन्दरी

धनगढी , ७ चैत

कालो बैठक (वर्ण) की, आँखीमे कारो चस्मा लगाएके औ अनुहारमे कछुनालगाएके कृत्रिम शृंगार करके एक सुन्दर युवती बघिनीके अग्गु बाँधि बकरीया हाँनी डरौनी दिखात हए । कुछ हप्ता अग्गु सामाजिक सञ्जालमे भाइरल भव भिडियो क्लिप कि बात हए  ।

लौडिया मिस नेपालके ताँहि अडिसनके दिन आइरहए । भिडियोमे प्रतियोगिताकी खास प्रशिक्षक कहि बो लौडिय हरेस खाइ हानी दिखातरहए । एक्काइसौं शताब्दीमे फिर लिपपोत नकरके, कन्ट्याक्ट लेन्स नलगाइके ऐसो सुन्दरी प्रतियोगितामे सहभागिताके ताँहि अडिसनमे आन कहेक प्रतियोगितक अपमान हए कहिके हकारी तव मुख्या प्रशिक्षकको ऐसो व्यवहार देखके छनोटकर्तानके उपर इकबरी बेढम आदमी अखनपडे ।

बाहिरी देखावटी दुनियाँके आधारमे कोइक अपमान करन नापडत हए कहिके बहस चलत रहए औ टिप्पणीकर्ता आफ्न बचाउमे कहि सुन्दरी प्रतियोगितामे मेकअप अनिवार्य हए औ जा के बारेम पता नैयँ कहेसे सहभागी हुइके आन नाहए कहिके आशय अन्तर्वार्ता दइँ । आयोजक संस्थासे फिर प्रेस विज्ञप्ति निकारके कहि , प्रतियोगीक आत्मविश्वासको परीक्षण करन उनके ऐसो अगठो स्थितिमे करदइहए ।
जा के सब देखत हएँ पर मयँ मनमनै सोचतरहौँ , हम दैनिक जीवनमे बाहिरी रुपके कित्नो महत्त्व देतहए । दिनमे कित्तो समय दुसरेक बाहिरी सुन्दरता औ कुरूपताके प्रशंसा औ आलोचना करनमे बितादेत हए ? हमर दिखानिया सुन्दरताक मापदण्ड का हए ? जक परिभाषा का हए ? का हए सुन्दर होन और का हए कुरूप होन ? का मिलैगो औ का नोकनक्सा होबैगो । शरिर गोरो होन औ नभएबेरा मेकअप करके गोरो बनान जानन इकल्लो सुन्दरताक परिभाषा हए त ? सुन्दरताक भूत हमर दिमाकमे कित्तो गहिरो जरगाडके बैठो हए ? कौन अच्छो कौन खराब हए बातकाटन हम कहाँसे सिके  ? बाहिरी आवरण खुब सुथरो भएसे का आदमीे सुन्दर होत हए त ?

जब मयँ एघार–बाह्र वर्षकी रहौ तव अपनेक कभहु अच्छी नलागो रहए । बोमे फिर कालो वर्णकी मयँ अपनक त कबहु अच्छि नलागो  । जब मयँ अपन आसपास मेरी उमेरकी और सखी गोरी औ बेढम सुथरी संगिनके देखतय मोके हरदिनं अपन कुरूपप्रति रुझँतहौ । बोमे फिर दुसरेक सन्तान गोरो अच्छि देखके मोके लागत रहए मिर अइया मोके इकल्लो का हए दुस्रेनसे कम सुन्दर बनाइ कहिके मोके चिन्ता खाएरहत रहए । एक दिन हिम्मत करके मयँ अइया से पुछडारो ‘अइया अइया मयँ का हे अच्छि नादिखात हौँ ? अच्छे बच्चा त औरु अच्छे दिखात हएँ कहिके सुनो रहौँ । मयँ इकल्लो का हे अच्छि नाजन्मो ?’ मिर ऐसी बात सुनके अइया मोके सम्झात कहि , ‘तय कहाँ खराबहए  ? इत्तो अच्छि हए तय  । देख त दुइ हात–टांग चिलले धरेहएँ , आँखीघेना देखके कहत हए , कित्तोबडी बडी आँखी , नाक उठी हए , कान फिर ठीकठाक हएँ , बार फिर कारे लम्बे हए  । कौन कहत हए तय सुथरो नइयाँ  ।’

अइया कि ऐसी बातसे कुछ भरोसा मिलत हए पर दुसरेन के देखके फिरके वीसी लागन लागत हए । पढाइमे ठीकठाक मयँ अपनके दुसरेन्से कम अच्छि मानतरहौँ । बोसे फिर टेलिभिजनमे आनबाले फेयरनेस क्रिमके विज्ञापनसे कारी होन कहेक अच्छि नइयाँ मानत हएँ , अच्छि त गोरीनसे इकल्लो कहात हए ? ऐसी ऐसी बात मिर दिमागमे आनके कारणसे फिर मयँ अच्छि हौँ कहिके अपनेक स्विकार लौ रहौँ । पर अपन कारो बैठकसे गर्व नभएसे फिर घृणौँ मिर मनमे नारहए । साएत जहे कारण हुइहए, विज्ञापनमे दिखानबारे फेयरनेस क्रिम मयँ आजतक नलगाओ कहेक काहेक जे सब लगानसे मयँ औरु अच्छो नदिखामौँ । अपन बैठक ( वर्ण ) प्रति मिरमनमे इत्तो अप्रेम बढोरहए तहिक मारे ब्लिच करके और गोरो औ सुथरी बनके दिखान मिर मनमे कभु ऐसो इच्छा नभओ । कभुकभा संगिन कहात हएँ तिर जिउ कित्तो मिलोहए , मयँ चुपचाप सुनत रहितो शरिरकि उपरी दिखनियाँ रुपसे कछु हुइतो त क्षतिपूर्ति मानके चित्त बुझातों ।

बो जहे कार्यक्रममे कहि करके त अभय सम्झनामे नइयाँ,पर स्कुल पढ्तपेति कोइ टेलिभिजन कि एक कार्यक्रममे शिक्षाविद अंगुरबाबा जोशीक अन्तर्वार्ता देखो रहौँ । बाको ओठ टेढो रहए बो बइयरके पहिलो दप्फेर देखो , देखतय कि बो मे एक किसिमको अचम्मकी आकर्षणसि चाल मय मयँ पओ । कार्यक्रम सञ्चालक बुक जवानी रहोबेराको बहुतय सुन्दर तस्बिर दिखातय बेनकि अभयक अवस्थाक बारेम बात करत पुछि । बो कि जवाफमे बो बइयर कहि रूप त क्षणिक हए, आदमीकमे गुण, सीप औ दक्षता होनपडत हए अनुहार कैसो हए ? शरीर कैसी हए ? कहनबाली बात त गौण हए कहि और सहज रूपमे उत्तर दइरहएँ । आदमिक सुन्दरसे फिर असल होन बहुत महत्त्वपूर्ण हए, तहिक मारे मिर टेढो ओठसे मोके कोइ फरक नापडत हए । उनी कि बातमे कितनो आत्मविश्वासे भरो लवज सुनके त मिर मन मनो सुन्न जैसो हुइगओ । अभर मिर जवानी टिन एजमे प्रवेश हुइरहो अबस्थामे उनकी ऐसी बातसे सुन्दरताके अर्थ जानके मोके बहुत सहयता मिलो । बो के प्रान्त मयँ कभहु फिर अपन कारी शरिरसे कोइ गुनासो नरहिगओ ।

‘सुन्दरता’ को मान्यता अलग हए औ बो क्षणिक हए कहनियँ बात मय जानगओ रहौँ । मयँ अपन जिल्लामे रहोबेरा रेडियोमे कार्यक्रम चलात रहौ । मयँ काठमाडौं आतय कि टेलिभिजनमे जय टकरानों । औसत अनुहार भए से फिर फोटोजेनिक कि कारणसे हुइहए टेलिभिजनमे जागिर पान खासै दिकत नभइ । काली होनसे फिर फोटुमे अच्छी दिखात हएँ कहनियाँ बात त मयँ सुन्तय आओ रहौ साइत तहिक मारे उमेरमे काँचको पर्दामे दिखानको सौख त स्वाभाविकय हए । पर्दाक अग्गु आनके ताँहि मेक अप अनिवार्य हए कहनियाँ बात पतारहए  । सुरुसुरुमे त बढीया लागो कहे कि मोके पता रहए कि मेकअपकि सहायतासे कारी शरिर भइ आदमी फिर पर्दामे कारी नादिखात हए । पर मय करिब छ वर्ष टेलिभिजनकी यात्रामे हरेक दिन कहो अनुसार एक कुर्सीमे बैठके मेकअप आर्टिस्टसे अपन अनुहारमे अनेक जिनिस पोतबान क्रम धिरेधिरे झन्झटिलो लाग्न लागो । टेलिभिजनको यात्रा निभटो कुछ वर्ष हुइगओहए । आज फिर खासै मेकअप करन इच्छा नलागतहए । किताब पढ्न रुचि होनके कारण हुइहए , मेकअप करनपेती खाली जानबालो समयके पढ्नमे लगान मन लागत हए ।

मिर ताँहि सुन्दरताको परिभाषा त समयके चक्रअनुसार परिवर्तन होत गओ । पर अभय फिर व्याह, व्रतबन्ध, पारिवारिक जमघट, औपचारिक समारोहमे जानपेति बाहिरी सुन्दरता औ शरीरक ढाँचा, बनोटके बारेम बहुतमेल कि टिकाटिप्पणी सुनन मिलत हए । कुछ समयअग्गु ऐसी एक व्याहमे गओरहौँ, दुलाहाक घेनसे व्याहमे जानबाले नैदुलहिन देखन खोबय मनपडत हएँ औ । दुलहिनके देखन ताँही लकसौ गुदाँै करत हएँ । लौडक घरमे आइ एक न्युताहार नैदुल्हीनके देखतय कहिडारी, ‘छिः, कित्तो कारी औ भैसीयसी मोटी हए । मय कित्तो अच्छि लौडिया दिखाओ रहौँ । कैसीके सँग ढिगरीया करके फँसगओ ।’ ऐसी बात सुनतय मय बोसे प्रतिवाद करों, ‘शील स्वभाव अच्छो हुइहए कि माइ । कछु नदेखके त जरुर मन नपडाइहुइहए ।’ माइक जवाफ रहए , ‘गुण कहनसे दिखानबाली चिजहए । देखतय कि देखतय रहिजामय ऐसो अनुहार होनपडत हए ।’

इमानदार हुइके कहौ त दुलहा फिर कहाँको अवतार हए । मयँ जहे बात कहो तओ उनको जवाफ रहए ‘लौडा आदमी जसो होएसे कछु फरक नपडहए ।’ मय विवाद करन ठिक नमानों । ब हे व्याहमे मिर एक नातेदार पडनियाँ बहिनियाँ संगय सेल्फी खिच्नके कहि । मेरी क्यामरासे फोटो खिच्नपेति पुछि , ‘दिदी कोइ ब्युटीएप नैयाँ तुमहर फोनमे ?’ हाँ लल्ला मेरी फोनमे कोइ ऐसो एपसेप नैयाँ, पर एडिट करर्के फिल्टर बालिनको इत्नो लम्बो लिस्ट हए । ऐसी बात सुनके बो अश्रय चकित हुइगइ औ जा को कारण पुछि । मयँ अपनके जैसो हौ , विसी फोटो मन पडत हए उत्तर दइ । बो हाँसतय कही, ‘कित्तो डिप्लोम्याटिक बात करोहए ।’

अनेक फिल्टर प्रयोग करके अफ्नो खास अनुहारके नक्कली रूपमे ‘सम्पादन’ करके का मजा आएहए कहनियाँ बात मय कभहु न जानपओ हौँ । ऐसी करके अपनके गोरी वा स्लिम बनाएके २६, २४, ३६ की मापदण्डमे बनानके मोके कभहु ना इच्छा भओ । कलेजमे पढत बेरी मयँ जद्धि स्लिम रहौ । वर्षौंपच्छु प्लस टु पढ्तको एक संगीसे भेट भओ बो मोके देखतय कि कहि , देखौ त कित्नो मोटीहुइगओ हए ?’ बो बहे संगिन हए जौन मोसे घरी घरी कहत रहए , ‘लुरी हावाको एक झोका आबैगो औ तोके उडाएके लइजएहए । गोझामे पथर डरके निगीए । पर आज थोरी वजन बढो कहिके अपनय कहत हए , ‘तय त स्लिम रहए तभि अच्छि औ कोइ फिर कपडा खुबय सोहत रहए ।’ मोके त बुक पहिलेक बातसे कछु फरक भओ और , न अभय कि बातसे ।

‘कुछ तो लोग कहेंगे… लोगों का काम है कहना । मिर वर्ण कैसो हए , मयँ कैसो दिखातहौ औ मिर शारीरिकि बनोट कैसो होन हए बो से मयँ उपर उठगिओ  । कुछ घटनासे मिर विचारमे परिवर्तन हुइगओ हए । पर अभय मिर आसपासके कछु साथीसङ्गी अफ्न अनुहार, शरीर वा रंगसँग गुनासो करत हएँ । कोइके हाइट कम भओमे , कोइके मोटो भाओमे, कोइके बार न पकय । अनगिन्ती असन्तुष्टि हएँ  । कुछ समयअग्गु एक सहकर्मी संगनि रहए बोकि वक्षस्थल स्वाभाविक रूपसे थोरी बडबड रहएँ  । बो के स्कुल पढनबेरा बहुत अगठो होतरहए । बो बेराके संगिनसे लैके अभय तकके संगि जहे कारणसे बोसे तुरताहिया कहत रहएँ , ऐसी ऐसी नाम बिगाडके बुलानसे बुक दिमागमे अपन स्तनके लइके एक बडो समस्याके रूपमे बैठगओ रहए । बो कि एकय सपना रहए जैसेतैसे करके पैसा इकटठा करके विदेशमे जाइके अच्छो शल्यक्रिया करके अफ्न स्तन ‘साइजमे’ लाइपइतो । बो के बहुत सम्झात हएँ तओ बो कहए ‘तिर फेला नपडो , तो के का पता ?’

जा उनको हौसला ना हए, बाध्यता हए । समाजमे बैठन हए कहेसे समाजको मापदण्डमे रहिके बैठनपडो । सामाजिक सञ्जालके आडम्बरी औ नक्कली प्रदर्शनसे उनमे औरौ लघुताभास आइजएहएँ । मन सुन्दर हए आदमी विसी अच्छो दिखात हए औ लाग्न लागत हए जा बात मय समझे पडो हौँ । कल मुहमे एक महोसा आनसे इत्नो घबराहट होत रहए आज मिर अनुहारभर महोसा हए पर उनके लुकानके जुक्ति मय नढुडत हौ बिन्दास रहतहौँ  । मय अपन समग्रतामे बहुत सहज हुइगओ हौँ ।

सुन्दर होन दुसरेक ताँहि का हए ? बो त मोके पता नैयाँ , पर कम्तीमे मिर ताँहि आजके दिनमे जा बाहिरी आवरणको खोल मात्र हए । मयँ जान चुको हौँ ‘ब्युटी कम्स इन एभ्री कलर । सेप एन्ड साइज ।’ सुन्दर बो हए जौन आदमीके रूपमे व्यवहार करय न कि वस्तुक रूपमे । अच्छि दिखानमे शरिर गोरो होन इकल्लो नैयाँ कहनबालि बात जाननमे मोके इत्तो जद्धि समय लागोे । आज मोसे थोरी कारी हए , मोटी हए , देखौ त रेओ दुब्ली या ओहो पेट कित्तो बडो हए कहनियाँ बातसे मिर मनमे कोइ असर नकरत हए । मोके पता हए मिर बाहिरी आवरण कोइसे अच्छो नइयाँ त कोइसे खरबौ नैयाँ । खराब हए त कोइ मिर का करले हए  ?’

रासस ः उजियाराे रानाथारू डटकमसे

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